राजनीति

Chhattisgarh: कब और किसने जीती थी ये सीट….कैसा रहा मरवाही का राजनीतिक इतिहास, पढ़िए

बिपत सारथी@पेंड्रा। (Chhattisgarh) छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन हो जाने के बाद जोगी के गढ़ माने जाने वाला मरवाही विधानसभा क्षेत्र में 3 नवंबर को उपचुनाव हुआ है और 10 नवंबर को मतगणना के पश्चात नतीजे आएंगे लेकिन इससे पहले आइए जानते हैं मरवाही विधानसभा का राजनीतिक इतिहास

(Chhattisgarh) वर्ष 1977 और 1980 के चुनाव में डॉ. भंवर सिंह पोर्ते (अब दिवंगत) ने कांग्रेस से चुनाव जीता। 1985 में दीनदयाल पोर्ते ने कांग्रेस से जीत हासिल की। 1990 में भंवर सिंह पोर्ते ने भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते। 1993 में कांग्रेस को फिर यह सीट मिली, तब पहलवान सिंह विधायक निर्वाचित हुए। 1998 में भाजपा से रामदयाल उइके ने जीत हासिल की, जिन्होंने जोगी के लिये इस्तीफा दे दिया।

(Chhattisgarh) छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद 2001 से लेकर अब तक मरवाही से अजित जोगी जीतते आये। 2003, 2008 और 2018 के चुनाव में अजित जोगी ने जीत का परचम लहराया। 2013 में उन्होंने अपने पुत्र अमित जोगी को लड़ाया। अमित जोगी के पास यह सीट 46 हजार 250 वोटों से जीतने का रिकॉर्ड है। पिछले चुनाव यानी 2018 में अजित जोगी की एकतरफा जीत हुई थी। उन्हें 74,041 वोट मिले, भाजपा की अर्चना पोर्ते को 27,579 और कांग्रेस के गुलाब सिंह राज को 20,040 वोट हासिल हुए। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की रितु पेन्ड्राम को 9,978 वोट मिले। इस तरह कांग्रेस पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रही। यह जोगी का प्रभाव था। मरवाही उपचुनाव में स्व अजीत जोगी के परिवार और पार्टी से प्रत्याशी भले ही इस चुनावी मैदान से बाहर हो गए हैं लेकिन जोगी के गढ़ में उनके रण को जीतना और वेदना,जितना आसान लग रहा है, उतना ही मुश्किल है क्योंकि उन्होंने मरवाही क्षेत्र को इस कदर बांध कर रखा था और उनके प्रति लोगों के दिलों में आत्मीय लगाव था यही एक कारण है स्व जोगी जी मरवाही में एक बड़े आंकड़े के साथ चुनाव जीतते थे।

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साल 2020 में अजीत जोगी के निधन के बाद मरवाही में उपचुनाव हुए हैं स्व अजीत जोगी के परिवार और पार्टी नामांकन रद्द होने के बाद चुनावी मैदान से बाहर हो गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जोगी परिवार से अगर कोई उम्मीदवार होता तो उसे हरा पाना मुश्किल होता।नामांकन के बीच जिस तरह की जोगी परिवार के साथ परिस्थिति बनी वह कई सवालों को जन्म देता है। साल 2018 के चुनाव के आंकड़े को देखें तो स्व अजीत जोगी के अलावा भाजपा पार्टी  कांग्रेस से अधिक मजबूत दिखाई पड़ती है। जबकि कांग्रेस 20 हज़ार वोटो के साथ कमजोर है। जोगी के दिवंगत होने के बाद कहा जा रहा था, उनके पुत्र अमीत जोगी चुनाव लड़ेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.. जोगी के वोट बैंक को देखे तो उनका मुकाबले में कोई और अभी तक नहीं दिखता। कांग्रेस का कहना है हम विकास के आधार पर मरवाही का चुनाव जीतेंगे। यह बात अलग है कि मरवाही की सड़कें तक अभी विकास के पैमाने को छू नहीं पाई है।हालांकि कांग्रेस की भूपेश सरकार ने ही गौरेला-पेंड्रा-मरवाही को जिला बनाने का काम किया है।

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अब बात करें आने वाले चुनाव परिणाम की तो कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत इस सीट पर झोंक दी थी, क्योंकि केवल सौगातों के नाम पर टिक पाना संभव नहीं, मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, संगठन सभी को ड्यूटी सेक्टर प्रभारी के रूप में लगा दी गई। यह तैयारी भाजपा को हराने के लिए नहीं था बल्कि जोगी फैक्टर को जड़ से उखाड़ फेंकना था।

दूसरी ओर भाजपा को यदि देखें तो उनके पास केवल एक कार्ड था जो कांग्रेस के हर कार्ड पर भारी पड़ा है और वो था अमित जोगी और जनता कांग्रेस छ्त्तीसगढ़ (जे) का समर्थन जिसने वाकई असर किया और इसी से कांग्रेस खुद को बचाना चाहती थी।

यह कहना बेमानी होगा कि अमित जोगी के भाजपा को समर्थन करने का कोई खास असर नहीं होगा। यह तो आने वाला चुनाव परिणाम जाहिर कर देगा कि स्व अजित जोगी की फ़ोटो से लेकर जोगी की आत्मकथा ने कांग्रेस के जड़ में कितनी चोटें मारी है।लेकिन, यह तय है कि असर हुआ है और चुनाव के ठीक पहले ऐन वक्त पर वोटरो का रुझान पलटा है। हालांकि, ऊपरी तौर पर कांग्रेस की स्थिति मजबूत बताई जा रही है लेकिन यह क्लीन स्वीप नहीं। स्व. जोगी के नाम और अमित जोगी के फार्म रिजेक्ट होने की घटना ने अंडर करेंट पकड़ा था और जमीनी रुप से जुड़े ग्रामीणों के बीच यदि आप पहुंचे तो कुछ और सुनने-समझने को मिलेगा जो कि मीडिया के खबरों से कोसो दूर है।मरवाही के स्थानीयों लोगों के कथन अनुसार आंकलन कहता है कि मरवाही नतीजे चौकानें वाले होंगे, तमाम मीडिया चैनलों का एग्जिट पोल मात खा सकता है, वहीं कांग्रेस यदि जीतकर भी आती है तो आंकड़े बड़ी नहीं होगी।

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