International Women’s Day 2021: छत्तीसगढ़ में महिला सशक्तिकरण का नया दौर

रायपुर। (International Women’s Day 2021) स्वच्छता दीदी हों या अंतरिक्ष में जाने वाली कल्पना चावला महिलाओं ने फर्श से अर्श तक हर क्षेत्र में खुद को साबित किया है। महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी कामयाबी का परचम लहरा रही हैं। कालान्तर से पड़ी लैंगिक असमानता की बेडि़या अब धीरे-धीरे टूटती जा रही हैं, लेकिन कई क्षेत्रों अभी भी महिलाओं को अधिक अधिकार सपन्न बनाये जाने की जरूरत है। (International Women’s Day 2021) सही अर्थों में महिला सशक्तिकरण उस दिन होगा, जब महिलाएं बिना किसी दबाव के स्वयं से जुड़े निर्णय लेने के लिए सक्षम और योग्य बन सकें। इसके लिए छत्तीसगढ़ में महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के साथ उनके स्वावलंबन की रणनीति अपनायी जा रही है।
(International Women’s Day 2021) छत्तीसगढ़ में बदलाव की बयार के साथ महिला सशक्तीकरण का नया दौर शुरू हुआ है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, पर्यवेक्षक, सुपोषण मित्र, मितानिन, शिक्षिका, बीसी सखी या स्व-सहायता समूह की कार्यकर्ताओं के रूप में महिलाएं प्रदेश की नींव मजबूत करने में महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रही हैं। पंचायतों में 50 फीसदी हिस्सेदारी के साथ उनकी सहभागिता को और अधिक मजबूत बनाया गया है। राज्य सरकार द्वारा शासकीय उचित मूल्य की दुकानों का संचालन, आंगनबाड़ी केन्द्रों के लिए पूरक पोषण आहार, रेडी-टू-इट फूड और स्कूलों में मध्यान्ह भोजन तैयार करने का काम समूह की महिलाओं को देने से गांव-गांव में परिवारों को आर्थिक मजबूती का आधार मिला है। यहां आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों के लिए नाश्ता और गर्म पके हुए भोजन तैयार करने का काम भी महिला समूह की महिलाएं कर रही हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से संचालित महिला कोष की ऋण योजना के माध्यम से महिला समूहों, निराश्रित विधवा महिलाओं को भी छोटे उद्योगों और कामकाज का संचालन के लिए 3 प्रतिशत ब्याज पर ऋण देकर उन्हें स्वावलंबी बनाया जा रहा है। महिला कोष के माध्यम से वर्ष 2020-21 में 291 महिला समूहों को ऋण प्रदान किया गया है।
महिला स्वालंबन की दिशा में एक कदम और बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ के जिला मुख्यालयों में गढ़कलेवा केन्द्रों का संचालन महिला स्व-सहायता समूहों को दिया गया हैं। राज्य शासन ने इसके लिए जरूरी सुविधायें, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करायी है। जिसका बेहतर प्रतिसाद मिलने लगा है। महासमुंद जिले के बसना जनपद पंचायत परिसर में फ्लोर कलेवा में दिव्यांग महिलाओं द्वारा छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की बिक्री की जा रही है। वनांचल क्षेत्र जशपुर में महिलाओं द्वारा गढ़कलेवा के साथ जंगल बाजार का संचालन किया जा रहा है। यहां स्थानीय शिल्पियों द्वारा निर्मित कलाकृतियों के साथ वन औषधि का विक्रय भी शुरू किया गया है। बिलासपुर जिले के तखतपुर ब्लॉक के ग्राम गनियारी में प्रदेश के पहले आजीविका अंगना (मल्टी एक्टिविटी सेंटर) शुरू किया गया है। यहां आंतरिक एवं बाह्य गतिविधियों में लगभग 650 महिलाएं जुड़ी हुई है। सुराजी गांव योजना के तहत भी ग्रामीण महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए समूहों के माध्यम से गोबर के विभिन्न उत्पादों, दुग्ध उत्पादन सहित अन्य आर्थिक गतिविधियों से जोड़ा गया है। नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना और गोधन न्याय योजना के तहत महिलाएं गौठानों में गोबर के दिए गमले, जैविक खाद, कीटनाशक से लेकर आयुर्वेदिक औषधी भी तैयार कर रही हैं। मधुमक्खी) पालन से लेकर मशरूम उत्पादन तक कई क्षेत्रों में महिला समूहों ने अच्छी पकड़ बना ली है। आदिवासी क्षेत्रों में कड़कनाथ मुर्गा पालन कर महिलाएं अच्छी कमाई कर रही हैं। आत्मनिर्भर बनकर महिलाएं न सिर्फ अपने परिवार को बेहतर जीवन स्तर देने में सक्षम बन रही हैं। बल्कि परिवार और समाज में अपना एक अलग स्थान बना रही हैं।
छत्तीसगढ़ के कई शहरों में क्लीन सिटी प्रोजेक्ट के तहत शहरों में स्वच्छता का काम स्वच्छता दीदियां बखूबी सम्हाल रही हैं। अम्बिकापुर दंतेवाड़ा जिला इसकी मिसाल बन गए हैं। बैंक सखियां ऑनलाइन कियोस्क लेपटाप और पे-प्वाइंट मोबाइल उपकरण के माध्यम से बैंकिंग की सुविधाएं गांव-गांव जाकर दे रही हैं। राष्ट्रीय आजीविका मिशन ‘बिहान‘ के तहत कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवारों की 20 लाख महिलाओं को स्वसहायता समूह के माध्यम से कई रोजगार मूलक गतिविधियों से जोड़ा गया है। ये महिलाएं अब सीमेंट पोल, सेंट्रिंग तार निर्माण जैसे पुरूषों के काम माने जाने वाले क्षेत्रों में अपना लोहा मनवा रहीं हैं। वनधन विकास केन्द्रों और लघु वनोपज प्रसंस्करण से जोड़कर महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है सीताफल संग्रहण और सीताफल पल्प फूड प्रोसेसिंग यूनिट से जुड़ी महिला समूहों के माध्यम से कांकेर के सीताफल की मिठास अब दूर-दूर तक पहुंचने लगी है। दंतेवाड़ा में मलबरी कोसा उत्पादन एवं रेशम निर्माण और कांकेर में मनरेगा से जुड़कर समूह की महिलाएं लाख उत्पादन कर रही हैं।
स्वावलंबन के साथ महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति भी राज्य सरकार गंभीर है। 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया का प्रतिशत अधिक पाए जाने पर उन्हें एनीमिया मुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण योजना का संचालन कर प्रदेश में महिलाओं को गर्म भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे लगभग 20 हजार महिलाएं एनीमिया मुक्त हुई हैं। नगर निगम क्षेत्रों में महिलाओं के लिए दाई-दीदी क्लीनिक की शुरूआत की गई है। महिलाओं में बदलाव न सिर्फ आर्थिक क्षेत्रों में बल्कि उनकी सोच भी दिखाई देने लगा है। आदिवासी क्षेत्र दंतेवाड़ा में ‘मेहरास-चो-मान‘ से जुड़कर महिलाएं सेनेटरी पैड निर्माण के साथ गांव-गांव में जागरूकता भी ला रही हैं। वह दिन दूर नहीं जब जागरूकता की इस अलख से तीजन बाई, फूलबासन यादव और नीता डूमरे जैसे नामें की श्रृंखला को महिलाएं बहुत आगे ले जाएंगी।
ldlaye
6wnmi3
ys5ug9
I cherished as much as you’ll obtain carried out right here. The cartoon is attractive, your authored subject matter stylish. nevertheless, you command get bought an nervousness over that you would like be turning in the following. sick for sure come more before again since exactly the similar nearly very incessantly within case you defend this increase.
We absolutely love your blog and find a lot of your post’s to be just what I’m looking for. can you offer guest writers to write content for yourself? I wouldn’t mind composing a post or elaborating on a few of the subjects you write about here. Again, awesome site!
gfpu28