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गणतंत्र दिवस 2023: क्या है बीटिंग रिट्रीट समारोह, जानिए इसका इतिहास और कब हुई इसकी शुरुआत

नई दिल्ली। 1950 को भारतीय संविधान के प्रभावी होने के कारण गणतंत्र दिवस बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। बीटिंग द रिट्रीट समारोह, जो हर साल 29 जनवरी को होता है, गणतंत्र दिवस समारोह से जुड़ा एक और स्मरणोत्सव है। गणतंत्र दिवस समारोह का औपचारिक समापन बीटिंग द रिट्रीट के साथ होता है, जो विजय चौक पर होता है।

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी के साथ गणतंत्र दिवस समारोह का समापन होता है। भारतीय राष्ट्रपति, जो सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर के रूप में कार्य करते हैं, समारोह की अध्यक्षता करते हैं। शाम के समय, समारोह के भाग के रूप में झंडे उतारे जाते हैं। बीटिंग द रिट्रीट के दौरान राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक और संसद भवन सभी को रोशनी से सजाया जाता है।

बीटिंग द रिट्रीट 

बीटिंग द रिट्रीट भारत के गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति का सूचक है। इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं। यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। गणतंत्र दिवस के पश्चात हर वर्ष 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। समारोह का स्थल रायसीना हिल्स और बगल का चौकोर स्थल (विजय चौक) होता है जो की राजपथ के अंत में राष्ट्रपति भवन के उत्तर और दक्षिण ब्लॉक द्वारा घिरे हुए हैं। बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है।

बीटिंग रिट्रीट का इतिहास क्या है?

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी सदियों पुरानी परंपरा है. ये तब से ही चली आ रही है जब सूर्यास्त के बाद जंग बंद हो जाती थी. जैसे ही बिगुल बजाने वाले पीछे हटने की धुन बजाते थे, वैसे ही सैनिक लड़ाई बंद कर देते थे और युद्ध भूमि से पीछे हट जाते थे. 

जानकारी के मुताबिक, 17वीं सदी में इंग्लैंड में इसकी शुरुआत हुई थी. तब जेम्स II ने शाम को जंग खत्म होन के बाद अपने सैनिकों को ड्रम बजाने, झंडा झुकाने और परेड करने का आदेश दिया था. उस वक्त इस समारोह को वॉच सेटिंग कहा जाता था.

बीटिंग रिट्रीट की ये परंपरा ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में है. भारत में पहली बार 1952 में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन हुआ था. तब इसके दो कार्यक्रम हुए थे. पहला कार्यक्रम दिल्ली में रीगल मैदान के सामने मैदान में हुआ था और दूसरा लालकिले में. 

सेनाओं के बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के मनपसंद गीत ‘Abide With Me’ की धुन बजाई थी. तभी से ये धुन हर साल बजाई जाती थी. हालांकि, इस बार ये धुन नहीं बजाई जाएगी. इस धुन को 2020 में भी नहीं बजाया गया था. हालांकि विवाद के बाद 2021 में इसे फिर बजाया गया. 

Abide With Me को स्कॉटलैंड के कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट ने 1847 में लिखा था. इसकी धुन प्रथम विश्व युद्ध में बेहद लोकप्रिय हुई. भारत में इस धुन को प्रसिद्धि तब मिली जब महात्मा गांधी ने इसे कई जगह बजवाया. 

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