Video: जरा बताए शिक्षा विभाग? जब ऐसे अभावों में पढ़ेगा तो कैसे आगे बढ़ेगा हमारे नौनिहाल…हमें पढ़ना है….लेकिन कैसे ?

जीवन पटेल@जांजगीर-चांपा। (Video) छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था को लेकर नेताओं द्वारा तो बड़े-बड़े दावे किये जा रहे है. जिस पर मुहर लगाते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारी भी वाहवाही लूटते हुए नजर आते हैं. जी हां लगातार शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़े-बड़े सपने दिखाए. अब ये सपने शीशे की तरह टूटते नजर आ रहे हैं. जब खुले आसमान में पढ़ रहे छोटे-छोटे मासूम बच्चों के मुंह से यह आवाज निकल कर आता है कि हमें पढ़ने का तो बहुत शौक है, (Video) मगर हमारे गांव में एक स्कूल नहीं है. जिसके चलते हम कड़ी धूप, भारी  बारिश और कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर होते हैं।

(Video) जी हां दरअसल पूरा मामला छत्तीसगढ़ जांजगीर चांपा जिले के नवागढ़ ब्लाक अंतर्गत ग्राम पंचायत टुरी (हीरागढ़) नामक एक छोटे से गांव का है। उस गांव में पढ़ने के लिए 105 छात्र हैं. उन्हें पढ़ाने के लिए वहां प्राथमिक शाला स्कूल की व्यवस्था नहीं है. जिसके चलते यह मासूम से बच्चे खुले आसमान में पढ़ने को मजबूर हैं। गांव में खंडहर जैसा एक जर्जर अतिरिक्त भवन है. जहां भारी बारिश में जान जोखिम में डालकर मासूम बच्चे पढ़ाई करते हुए नजर आते हैं. इस भवन की हालत इतनी जर्जर है कि बरसात में थोड़ी सी बारिश में जगह-जगह से पानी टपकने लगता है. दीवारों पर बड़े-बड़े दरार आ चुके हैं.

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जब इस पूरे मामले में वहां के शिक्षकों से बात किया गया तो उनके द्वारा बताया गया कि विगत कई वर्षों से यहां एक छोटा सा प्राथमिक स्कूल संचालित हो रहा था. जहां बच्चे पढ़ाई करते है, मगर 3 वर्ष बीत चुका है. वह प्राथमिक शाला स्कूल खंडहर में तब्दील हो चुका है. जिसके छत गिरने लगे हैं. दीवारों पर बड़े-बड़े दरार आ चुके हैं. जिसके चलते बच्चे उस स्कूल में बैठकर शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते है, तो वहीं प्रशासन के द्वारा यहां निर्माण कराए गए एक अतिरिक्त भवन भी है. जिस भवन की हालत भी बद से बत्तर है

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ग्राम पंचायत टूरी(हीरागढ़) में शासकीय प्राथमिक स्कूल भवन निर्माण के लिए वहां के शिक्षकों द्वारा कई बार उच्च अधिकारियों को लिखित में आवेदन दिया जा चुका है. अधिकारी केवल आश्वासन देते हुए नजर आते हैं और 3 वर्ष बीत जाने को है. अब तक यहां एक शासकीय प्राथमिक स्कूल भवन का निर्माण नहीं हो पाया है. जिसके चलते ये मासूम से बच्चे अपनी जान को जोखिम में डालकर यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए मजबूर हैं. जब भी अधिकारियों से इन बच्चों के लिए प्राथमिक स्कूल भवन निर्माण की बात कही जाती है तो वे इन बातों को नजरअंदाज कर देते हैं.

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