ट्रेन में महिला पुलिसकर्मी पर हमला, उच्च न्यायालय ने रेलवे को ‘अपने कर्तव्यों में विफल’ होने के लिए फटकार लगाई
नई दिल्लीः एक महिला कांस्टेबल को ट्रेन के डिब्बे में घायल और “खून से लथपथ” पाए जाने के बाद सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रेलवे सुरक्षा बल को कड़ी फटकार लगाई।
मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने आरपीएफ को “अपने कर्तव्यों के निर्वहन में विफल” होने के लिए फटकार लगाई। उन्होंने राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) को 13 सितंबर तक अपनी जांच पर प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।
वर्तमान घटना स्पष्ट रूप से भारतीय रेलवे अधिनियम के कुछ प्रावधानों के उल्लंघन को दर्शाती है। इसके अलावा, रेलवे सुरक्षा बल भी यात्रियों की सुरक्षा के लिए बनाए गए नियमों और विनियमों को प्रभावी बनाने में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के निर्वहन में पूरी तरह से विफल रहे हैं। वर्तमान घटना न केवल महिलाओं के खिलाफ अपराध है, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ है और यह महिलाओं के पूरे मनोविज्ञान को नष्ट कर देती है।
रविवार को मुख्य न्यायाधीश दिवाकर ने देर शाम अपने आवास पर बैठक कर सरयू एक्सप्रेस में महिला कांस्टेबल पर हमले के संबंध में व्हाट्सएप संदेश मिलने के बाद स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की थी. उन्होंने अपनी और न्यायमूर्ति श्रीवास्तव की एक पीठ के गठन का निर्देश दिया था और केंद्र और आरपीएफ को नोटिस देने का आदेश दिया था।
महिला कांस्टेबल, जिसकी पहचान उजागर नहीं की गई है, 30 अगस्त को अयोध्या स्टेशन पर सरयू एक्सप्रेस के एक ट्रेन डिब्बे में बेहोश पाई गई थी। उसके चेहरे पर किसी धारदार हथियार से हमला किया गया था और उसकी खोपड़ी पर दो फ्रैक्चर हुए थे।
जीआरपी ने कहा कि उसे लखनऊ के केजीएमसी अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसकी हालत अब स्थिर है।
कांस्टेबल के भाई की लिखित शिकायत के बाद, आईपीसी की धारा 332 (एक लोक सेवक को उनके कर्तव्य से रोकने के लिए जानबूझकर नुकसान पहुंचाना), 353 (एक लोक सेवक को उनके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल) और 307 के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पुलिस ने कहा कि अब तक यौन उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं है। आगे की जांच जारी है.