आदिवासी समाज ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया विरोध, परंपराओं पर खतरे की आशंका

जगदलपुर। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदिवासी बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार देने के फैसले का छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में आदिवासी समाज ने विरोध किया है।
समाज के नेताओं का कहना है कि यह निर्णय उनकी प्राचीन परंपराओं और रीति-रिवाजों के विरुद्ध है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि यह फैसला भले ही कानूनी रूप से सही हो, लेकिन यह आदिवासी संस्कृति की आत्मा के खिलाफ है। उन्होंने बताया कि झारखंड सहित अन्य राज्यों के आदिवासी नेताओं से चर्चा कर इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी की जा रही है।
नेताम ने आशंका जताई कि इससे लव जिहाद जैसे मामले बढ़ सकते हैं और समाज में तनाव उत्पन्न हो सकता है। राजाराम तोड़ेम ने कहा कि आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन को देवता मानता है, और विवाह के बाद बेटियों को जमीन देने से देवी-देवता दूसरे कुल में चले जाएंगे, जिससे सामाजिक टकराव हो सकता है।
सर्व आदिवासी समाज के जिलाध्यक्ष दशरथ कश्यप ने कहा कि बेटियों को अप्रत्यक्ष रूप से संपत्ति में सहयोग दिया जाता है, लेकिन अधिकार देना परंपराओं के विपरीत होगा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में कहा कि आदिवासी बेटियों को संपत्ति से वंचित रखना लैंगिक भेदभाव और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। फिलहाल समाज में इस फैसले को लेकर आक्रोश और असमंजस की स्थिति बनी हुई है।