एक तिहाई सत्र गुजरने के बाद भी टेंडर प्रक्रिया उलझी: 3 साल में 120 करोड़ की किताबें स्कूलों में डंप

रायपुर। राज्य के अधिकांश स्कूलों में पिछले तीन सत्रों से 120 करोड़ रुपए की किताबें डंप पड़ी हैं। इन किताबों के इस्तेमाल के लिए न तो कोई सिस्टम बनाया गया और न ही स्कूलों के टाइम टेबल में जगह दी गई। शिक्षा विभाग ने भी इस मामले में कोई निर्देश जारी नहीं किया। बावजूद इसके, इस साल फिर से 40 करोड़ रुपए से अधिक की किताबें खरीदकर बांटने की योजना बनाई जा रही है।
समग्र शिक्षा विभाग का कहना है कि सत्र का एक तिहाई हिस्सा गुजर जाने के बाद भी टेंडर प्रक्रिया में उलझन के कारण किताबें स्कूलों तक समय पर नहीं पहुंच पाती हैं। टेंडर से लेकर किताबों के वितरण में लगभग तीन महीने लगते हैं, तब तक स्कूलों में परीक्षा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। ऐसे में पिछले सत्रों की तरह ये किताबें भी डंप पड़ी रह जाती हैं।
ये किताबें लाइब्रेरी के लिए सपोर्टिंग पाठ्यक्रम के तौर पर बांटी जाती हैं ताकि बच्चे कोर्स को बेहतर ढंग से समझ सकें। लेकिन भास्कर की पड़ताल में यह पता चला कि इन किताबों को हर साल तीसरे-चौथे सत्र में स्कूलों में पहुंचाया जाता है, जब शिक्षक और छात्र परीक्षा की तैयारियों में जुटे रहते हैं।
शिक्षा विभाग किताबें बांटने से पहले स्कूलों की डिमांड या लाइब्रेरी की स्थिति नहीं पूछता। प्रायमरी और मिडिल स्कूलों में लाइब्रेरी ही नहीं होती, जबकि हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों में किताबें डंप पड़ी रहती हैं।
राज्य के अलग-अलग जिलों में किताबों की स्थिति का खुलासा भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट में किया गया, लेकिन शिक्षा विभाग ने गंभीर कदम नहीं उठाए। केवल रायपुर में जिला स्तर पर एक वाट्सअप मैसेज भेजकर मॉनीटरिंग के निर्देश दिए गए। न शिक्षकों की लाइब्रेरी उपस्थिति अनिवार्य की गई, न किताबों को खेल-खेल में पढ़ाने का सिस्टम बनाया गया।
समग्र शिक्षा विभाग का कहना है कि उनका काम बेस्ट किताबें छापकर स्कूलों तक पहुंचाना है। अगर स्कूलों में किताबें पढ़ाई नहीं जा रही हैं, तो इसे मॉनीटर करना शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है।