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असम में मटक समेत 6 आदिवासी समुदाय सड़कों पर उतरे,अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग

राज्य की आबादी में हिस्सेदारी 12 प्रतिशत

गुवाहटी। असम में मटक समुदाय और पांच अन्य आदिवासी जनजातियां अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आई हैं। मटक समुदाय ने पिछले 10 दिनों में दो विशाल रैलियां निकाली हैं, जिसमें 30 से 50 हजार लोग हाथ में मशाल लेकर शामिल हुए। रैलियों की धमक राज्य के विभिन्न हिस्सों में महसूस की गई।

मटक समुदाय के युवा आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। ऑल असम मटक स्टूडेंट यूनियन के केंद्रीय अध्यक्ष संजय हजारिका ने कहा कि समुदाय लंबे समय से एसटी दर्जा चाहता है, लेकिन सरकार ने कई बार आश्वासन देने के बावजूद कोई समाधान नहीं निकाला। अब आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक मांग पूरी नहीं होती।

मटक से पहले मोरान समुदाय ने भी डिब्रूगढ़ में अनुसूचित जाति दर्जा मांगने के लिए रैली निकाली थी। ऑल मोरान स्टूडेंट्स यूनियन ने सरकार को 25 नवंबर तक का समय दिया है, अन्यथा आर्थिक नाकेबंदी की चेतावनी दी है।

सरकार के लिए चुनौती यह है कि छह आदिवासी समुदायों की कुल आबादी राज्य में लगभग 12% है। यदि उन्हें एसटी दर्जा दिया गया, तो यह संख्या 40% तक पहुंच सकती है। इससे गैर-आदिवासी आबादी में असंतोष बढ़ सकता है और असम को पूर्वोत्तर राज्यों की तरह पूर्ण एसटी प्रदेश बनाने की मांग उठ सकती है।

इनका उद्देश्य सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और प्रशासनिक फैसलों में अधिकार सुनिश्चित करना है। युवाओं का कहना है कि बिना दर्जा मिलने के कारण नौकरी और भूमि संबंधी अधिकार सीमित हैं। आंदोलन का नेतृत्व युवा कर रहे हैं और वे नई दिल्ली जाकर भी अपनी मांग दर्ज कराएंगे।

राज्य की सरकार सीएम हिमंता बिस्व सरमा के नेतृत्व में बार-बार वार्ता का प्रयास कर रही है, लेकिन आदिवासी समुदाय बातचीत से इनकार कर रहा है। इसके चलते असम में चुनावों से पहले यह आंदोलन एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन गया है।

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