रायगढ़ : शैलचित्रों की दुर्लभ श्रृंखला का गढ़

रायगढ़। जिला मुख्यालय से 20 किलो मीटर दूर भूपदेवपुर के समीप ग्राम सिंघनपुर के समीप मैकल पर्वत श्रेणी में लगभग 2 हजार फीट की ऊंचाई पर मनोरम पहाडिय़ों के बीच जैव विविधता से परिपूर्ण सिंघनपुर की अद्वितीय गुफा है, जहां गैरिक रंग में मानव शरीर का आकार सीढ़ीनुमा सदृश, मानव आकृतियां एवं पशु-पक्षी की आकृतियां बनी हुई है। सिंघनपुर की पहाडिय़ों में तीन गुफाएं हैं, जिनमें से दो दक्षिणमुखी है एवं तीसरा पूर्वमुखी है। पूर्वमुखी गुफा जिसके बाह्य भाग में शैल चित्र है, जहां जाना भी कठिन ही है। प्रागैतिहासिक शैलाश्रय की पुष्टि 19 वीं शताब्दी के मध्य पुरातत्व अधिकारी श्री ए.सी.करलेले ने की थी। आदिम युगीन के इन शैलचित्रों को स्व.एंडरसन ने 1912 ईसवीं में पहली बार देखा था। उन्होंने 1918 में इंडियन म्यूजियम ऑफ कलकत्ता के निदेशक श्री पर्सी ब्राउन को इसकी जानकारी दी थी, जिन्होंने अपनी पुस्तक इंडियन पेंटिंग में शैलचित्रों का जिक्र किया था। स्व.श्री एंडरसन अपने साथी श्री राबर्टसन के साथ सिंघनपुर की गुफा गए थे और यहां का अन्वेषण किया। इसी दौरान गुफा में मधुमक्खियों के काटने से राबर्टसन की मृत्यु हो गयी। उनकी स्मृति में रेलवे स्टेशन का नाम रॉबर्टसन रखा गया है। पर्सी ब्राउन के बाद कई पुरातत्वविद सर हेनरी हडवे, श्री व्ही स्मिथ, अमरनाथ दत्ता और पंडित लोचन प्रसाद पांडेय ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। सिंघनपुर की गुफा, पुरातत्वविदों के लिए जिज्ञासा एवं कौतुहल से भरी हुई है।
रायगढ़ से लगभग 70 किलोमीटर दूर धरमजयगढ़ विकासखण्ड मुख्यालय से ग्राम ओंगना 4 किलोमीटर दूर है। वहां समीप के पहाडिय़ों में शैलाश्रय में मोहक शैलचित्र बने हुए है। ओंगना के शैलचित्र मानवीय सभ्यता के क्रम को प्रगट करते है। यहां तीन मानव की आकृतियां है। सामूहिक नृत्य का चित्रांकन, बैल की आकृति, साज-सज्जा वाली मानव आकृतियां है। ग्रामीण इसे देव स्थान के रूप में मानते है।
धरमजयगढ़ से 17 किलोमीटर दूर पंचभैया पहाड़ी पर प्राचीन महत्व के शैलचित्र हैं। ऐसी किवदंति है कि प्राचीन काल में पांचों पांडवों ने यहां रूककर विश्राम किया था। पहाड़ी के कटाव पर शैलचित्र हैं, जो गेरूए रंग से बने हुए हैं। इस पहाड़ पर हाथा नामक स्थान है, जहाँ चट्टानों पर 34 पंजों के निशान मिले हैं। वन्दनखोह गुफा के शैलचित्र, घोड़ी डोंगरी पहाड़ी के शैलचित्र, सिसरिंगा के चिनिडंड पहाड़ी के शैलचित्र एवं वोडरा कछार पहाड़ी के शैलचित्र अनूठे हैं। धरमजयगढ़ की राबकोब गुफा के शैलचित्र विशेष हैं। यह स्थल धरमजयगढ़ के ग्राम पोटिया के समीप पहाड़ी की तलहटी में अवस्थित है। कार्बन डेटिंग से गुफा में निर्मित शैलचित्र 20 से 30 हजार वर्ष पुराना निर्धारित किया गया है।
रायगढ़ से दक्षिण दिशा में 8 किलोमीटर दूर ब्रम्हनीन पहाड़ी पर बसनाझर पहाड़ी के गुफाओं एवं कंदराओं में अनगिनत शैलचित्र बिखरे हुए है। स्व.श्री एंडरसन द्वारा सिंघनपुर के शैलचित्रों के खोज के बाद बसनाझर के शैलचित्र पर भी अनुसंधान किया गया। पुरातत्वविदों के अनुसार ये शैलचित्रों 10 हजार ईसा पूर्व के है। ये शैलचित्र प्रस्तर युग तथा नवीन प्रस्तर युग के है। जिनमें आखेट युग को भी दर्शित किया गया है। आदिम शैलचित्रकारों ने आखेट दृश्य को प्रस्तुत किया है। यहां हिरण मानव आकृतियां एवं खेती तथा पशुपालन, सूर्यचक्र, देव आकृति प्रदर्शित किए गए है।