Pola: धूमधाम से मनाया गया पोला पर्व, जानिए कैसे मनाया जाता है छत्तीसगढ़ का ये त्यौहार

दुर्गा प्रसाद सेन@बेमेतरा। भारत कृषि  प्रधान देश है। छत्तीसगढ़ में पोला (Pola) का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन किसान गाय ,बैलो  की पूजा अर्चना करते हैं। भादो माह की अमावस्या तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है। ज्यादातर किसानों खेती के लिए बैलों का उपयोग करते हैं, इसलिए किसान पशुओं की पूजा अर्चना कर इस त्यौहार को मनाते हैं।

पोला (Pola) दो तरह से मनाया जाता है. बड़ा औऱ छोटा पोला, बड़े पोला में बैलों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। जबकि छोटा पोला मे बच्चे मिट्टी के बने बैलों को मोहल्ले पड़ोस में घर-घर ले जाते हैं। किसान परिवार पूजा अर्चना के लिए कृषि औजारों की सजावट औऱ बैलो का श्रृंगार करते हैं।

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मिट्टी से बने खिलौने का विशेष महत्व

मिट्टी के बने खिलौने का इस दिन विशेष महत्व होता है। पूजा अर्चना के बाद बच्चे इससे खेलते हैं। वहीं इन खिलौने को देवी देवताओं को अर्पित करने की परंपरा भी है। पोला पर्व मुख्य रूप से खेती किसानी से जुड़ा है। खेती किसानी में बैल औऱ गो वंशीय पशुओं के महत्व को देखते हुए गांवो में इस दिन बैलो की विशेष रुप से सजाया जाता है।

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अन्न माता करती है गर्भधारण

पोला(Pola)  त्यौहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में प्रायः बोनी, निंदाई कुड़ाई का कार्य संपन्न हो जाता है। इस दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है, अर्थात धान के पौधों में दूध भरता है। इसलिए इस त्यौहार की महत्ता बढ़ी हुई है।

बैलों को देव तुल्य मानते है किसान

किसान बंधु बैलों को देव तुल्य मानते हैं। क्योंकि खेती किसानी बैलो के भरोसे ही की जाती है। समय के साथ उन्नत खेती के लिए अनेकों प्रकार के मशीनों का चलन बढ़ जाने से बैलो पर से निर्भरता समाप्त होने लगी है। मात्र छोटे किसान ही बैलो से खेती कर रहे हैं। इस कारण किसान अच्छी नस्लों के बैल नही पाल रहे हैं। जिससे पोला पर्व का मुख्य आकर्षण बैल दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।यह परंपरा विलुप्त होने की कगार मे हैं।

ये पकवान घरों में होते है तैयार

घरों में ठेठरी, खुरमी,गुड़ चीला, गुलगुल भजिया जैसे पकवान तैयार किये जाते हैं। गुड़हा,चीला अनरसा, सोहारी, चौसला खुरमी, बरा,मुरकु,गुजिया, छत्तीसगढ़ के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। किसान गौ माता औऱ बैलों को नहलाकर श्रृंगार करते हैं। सींग औऱ खुर यानी पैरों में माहुर नेल पॉलिश, गले में घुँघरु,घंटी, कौड़ी के आभूषण पहनाकर पूजा अर्चना करते हैं।

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