
रविकांत तिवारी@गरियाबंद…पुल नहीं हो वोट नहीं.. जी हाँ ये शब्द इन दिनों 5 पंचायत के ग्रामीण कहते हुए नजर आ रहे है.. चार साल पहले सेनमुड़ा नदी पर शुरू हुआ पुल का काम शुरू अभी भी अधूरा पड़ा हुआ है.. काम को पूरा करवाने में ठेकेदार रूचि नहीं ले रहा है.. स्थिति यह है कि ठेकेदार बीच-बीच में काम को शुरू कर अपने मनमुताबिक उसे बंद भी कर देता है..ठेकेदार ने पिछले सात महीने से पुल का बंद बंद कर दिया है.. चार साल पहले शुरू हुए पुल का काम आधा-अधूरा होने के चलते पांच पंचायत के ग्रामीणों की नाराजगी दिन ब दिन शासन-प्रशासन के ऊपर बढ़ती जा रही है..सप्ताह भर पहले पीएमजीएसवाय विभाग के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सद्बुद्धि यज्ञ करने वाले ग्रामीणों ने अब जिला पंचायत सदस्य शकुंतला देशबंधु नायक के नेतृत्व में हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है.. बुधवार को शुरू हुए इस हस्ताक्षर अभियान में जिला पंचायत सदस्य, पूर्व जनपद उपाध्यक्ष और ग्रामीणों के साथ घर-घर पहुंची… घर पहुंची जिला पंचायत सदस्य का ग्रामीणों ने आत्मीय स्वागत किया.. ग्रामीणों ने चावल का टीका लगाकर उनके इस अभियान में जुड़ने की बात कहते हुए हस्ताक्षर किया.. जिला पंचायत सदस्य ने कहा कि उनका हस्ताक्षर अभियान शुरू हो चुका है.. इस अभियान के मद्देनजर वे पांच पंचायत सेनमुड़ा, सुपेबेड़ा, निष्टिगुड़ा,झिरीपानी और खोकसरा में घूमकर हस्ताक्षर अभियान चलाएंगी..वहीं पूर्व जनपद पंचायत उपाध्यक्ष देशबंधु नायक ने कहा कि देवभोग दौरे के दौरान मुख्यमंत्री जी से मिलने का समय लेकर उन्हें पांच गॉव का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सौंपा जायेगा… पूर्व जनपद उपाध्यक्ष ने कहा कि पांच पंचायत के ग्रामीणों ने एक सुर में निर्णय लिया है कि यदि विधानसभा चुनाव के पहले पुल नहीं बना.. तो वे पुल नहीं तो वोट नहीं का स्लोगन देते हुए चुनाव में वोट बहिष्कार करेंगे…
चार दशक से कर रहे है मांग -: शासन-प्रशासन के सुस्त और उदासीन रवैये से पांच गॉव के ग्रामीण बहुत ज्यादा परेशान है.. सेनमुड़ा के डिगचंद नायक ने बताया कि पुल के लिए पांच पंचायत के बड़े बुजुर्गों ने मध्यप्रदेश सरकार के समय से मांग किया था..छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद उम्मीद की किरण ने तेजी पकड़ा कि राज्य की तत्कालीन बीजेपी सरकार ग्रामीणों की बड़ी समस्या को दूर करने में दिलचस्पी दिखाएगी और यह समस्या दूर भी हो जायेगी.. उम्मीद के मुताबिक ग्रामीणों ने बीजेपी सरकार के समय भी कई आवेदन दिए… लेकिन आवेदन हमेशा ठंडे बस्ते में चली गई..तत्कालीन बीजेपी सरकार ने तीसरे कार्यकाल में पुलिया की स्वीकृति दी.. वहीं सत्ता से बीजेपी की विदाई के बाद सारा दारोमदार सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस पर आ गया… काम तो शुरू हो गया
लेकिन शासन-प्रशासन में बैठे जिम्मेदारों ने ठेकेदार को खुली छूट दे दिया.. इसी का नतीजा है कि आज चार साल बीतने के बाद भी पुल का काम अधूरा पड़ा हुआ है.. विभाग के जिम्मेदार अधिकारी यदि गंभीर होते तो आज पुल का काम लगभग पूरा होने के कगार पर होता.. वहीं ग्रामीणों का आरोप है कि सीएम के दौरे को देखते हुए एक बार फिर विभाग सक्रिय हुआ है.. और ठेकेदार के कुछ लोग मौक़े पर पहुँचे है.. लेकिन काम अब तक शुरू नहीं हुआ है.. ग्रामीणों का आरोप है कि पीएमजीएसवाय विभाग के लचर कार्यप्रणाली के चलते ठेकेदार काम शुरू करवाने में रूचि नहीं ले रहा है..
कछुए की गति से चल रहा काम -: 4 साल में तेलनदी सेनमुड़ा घाट के पुल के लिए 12 में से तीन पियर (पिल्लर) अब तक खड़ा हो गया है.. और दो में स्लेब भी डल गया है। पुल निर्माण को लेकर 8 गांव के लोगों ने विधानसभा व लोकसभा चुनाव का बहिष्कार तक कर दिया था। काम की धीमी गति को लेकर अफसरों ने सख्त नाराजगी भी जताई, लेकिन उनकी नाराजगी के बाद भी काम कछुए की गति से चलता रहा । ज्ञात हो कि सुपेबेडा, सेनमुड़ा, खोखसरा समेत 8 गांवों के लोग इसी नदी को पार कर 10 से 15 किमी का सफर तय कर देवभोग ब्लॉक मुख्यालय आते हैं लेकिन बारिश में नदी का बहाव तेज होते ही उन्हें कुम्हड़ाई घाट से होकर आना पड़ता है। रास्ते की दूरी दोगुनी हो जाती है।
पहले भी कर चुके है चुनाव का बहिष्कार -: 8 गांवों के परेशान ग्रामीणों ने 2018 में विधानसभा व 2019 में लोकसभा चुनाव का बहिष्कार कर दिया था। हालांकि मतदान में 4 गांवों के लोग मतदान बहिष्कार पर कायम रहे। निर्माण में देरी को लेकर फिर से ग्रामीणों में आक्रोश है। वर्षों से ही तेल नदी के सेनमुड़ा घाट पर पुल निर्माण की मांग की जा रही है। 4 साल पहले अनुबंध कर निर्माण शुरू किया गया था…
नई डिजाइन की स्वीकृति के लिए लग गए डेढ़ साल -:
यहां बताना लाजमी होगा कि 2016 में इस पुल के लिए 8 करोड़ की मंजूरी मिली, 2017 में गणपत कंस्ट्रक्शन रायपुर से अनुबंध हुआ। काम 2017 में शुरू हो गया। नींव के लिए खुदाई शुरू हुई तो पता चला कि नींव के बेस तय गहराई से कई फीट अंदर तक जाना पड़ेगा। स्वीकृत डिजाइन को बदलकर पाइल्स होल का डिजाइन तैयार किया गया। नए डिजाइन की स्वीकृति के लिए भोपाल में डेढ़ साल लग गए। 2 करोड़ की बढ़ी लागत के साथ 10 करोड़ की नयी दर पर जनवरी 2020 में कंपनी ने फिर से काम शुरू किया। विभागीय गलती के कारण डिजाइन में हुए उलटफेर से ठेकेदार को जो नुकसान हुआ, उसी की भरपाई के लिए इस कार्य को अफसरों ने सॉफ्ट कॉर्नर में रखा हुआ है।