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सरेंडर करने वाले नक्सली लीडर रुपेश ने खोला चौंकाने वाला राज

जगदलपुर/कांकेर। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के बीच उठे विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। नक्सली नेता रुपेश और उनके 208 साथियों के आत्मसमर्पण ने उन दो वर्गों के बीच बहस तेज कर दी है, जो आत्मसमर्पण के खिलाफ हैं या इसके पक्ष में।

नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी ने आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी नेताओं को संशोधनवादी, गद्दार और धोखेबाज करार दिया है। यह रवैया नया नहीं है। हथियारबंद आंदोलन को विदा कहने वाले या पार्टी लाइन से अलग विचार रखने वाले पुराने नेता जैसे कानू सान्याल और सीतारमैय्या को भी गद्दार करार दिया गया था।

इस बयान के बाद रुपेश उर्फ सतीश ने आत्मसमर्पण की पृष्ठभूमि और चौंकाने वाले राज सामने रखे। उन्होंने वीडियो बयान में कहा कि पोलित ब्यूरो महासचिव बसवराजू शांति वार्ता के पक्षधर थे, जबकि माओवादी नेता देवजी इसे नहीं चाहते थे। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने साथियों के साथ चर्चा कर आत्मसमर्पण किया और बसवराजू की पहल को आगे बढ़ाया।

रुपेश ने कहा कि पोलित ब्यूरो महासचिव बसवराजू ने शांति वार्ता को लेकर केंद्रीय समिति के सदस्यों के नाम पत्र लिखा था, लेकिन यह पत्र अन्य माओवादी साथियों तक नहीं पहुँच सका। बसवराजू की मृत्यु से पहले लिखे गए आखिरी पत्र में भी शांति वार्ता की बात दर्ज थी।

रुपेश ने स्पष्ट किया कि उनका कदम हथियार छोड़कर सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण करने का था और उन्होंने इसे पूरी सोच-विचार के बाद अंजाम दिया। उन्होंने आत्मसमर्पण को न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए, बल्कि अपने साथियों की भलाई और शांति स्थापना के प्रयास के रूप में बताया। इस खुलासे के बाद नक्सली संगठन में आंतरिक मतभेद और शांति वार्ता की संभावना पर नई बहस शुरू हो गई है।

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