ढोकरा शिल्प को राष्ट्रीय पहचान,हीराबाई झरेका बघेल को राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार

रायपुर। छत्तीसगढ़ की गौरवशाली धातुकला को एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की सुप्रसिद्ध ढोकरा–बेलमेटल शिल्पकार हीराबाई झरेका बघेल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित एक विशेष समारोह में प्रदान किया गया।
इस सम्मान पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने हृदयपूर्वक बधाई देते हुए कहा कि यह उपलब्धि केवल एक कलाकार की नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की धरोहर का सम्मान है। उन्होंने कहा कि राज्य की कला, संस्कृति और हस्तशिल्प सदैव से पहचान रहा है और सरकार इसे और मजबूत बनाने के लिए सतत प्रयासरत है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पुरस्कार प्रदेश के प्रत्येक शिल्पकार के मनोबल को और ऊंचा करेगा। ढोकरा कला आदिम जनजातीय धरोहर है, जिसे सदियों से छत्तीसगढ़ के कारीगर जीवित रखे हुए हैं। इस कला में मोम ढलाई तकनीक का उपयोग कर मनुष्य, पशु-पक्षी, देवी-देवताओं और लोकजीवन से जुड़े आकर्षक बेलमेटल शिल्प बनाए जाते हैं। श्रीमती बघेल इसी परंपरा को नई रचनात्मक ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए जानी जाती हैं।
ग्राम पंचायत बैगीनडीह जैसे दूरस्थ वनांचल क्षेत्र से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त करना उनके संघर्ष, समर्पण और कला दक्षता का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने स्थानीय परंपरा को न केवल संरक्षित किया, बल्कि आधुनिक बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए इसे नए आयाम भी दिए हैं।
सरकार के अनुसार, राज्य में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से शिल्पकारों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता, आधुनिक विपणन तकनीक और राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में शामिल होने के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं, जिससे ग्रामीण और जनजातीय कलाकारों को आत्मनिर्भरता की राह मिल रही है।
हीराबाई झरेका बघेल का यह राष्ट्रीय सम्मान छत्तीसगढ़ के हस्तशिल्प की चमक को और प्रखर करेगा और आने वाले युवा कलाकारों को प्रेरित करेगा।





