बेरोजगारी और जमीन विवाद 6 साल से सुलग रहे
लेह। लद्दाख में रविवार को कर्फ्यू का पांचवां दिन है। हिंसा के बाद सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। 24 सितंबर की हिंसा में चार लोग मारे गए, जिनमें से दो जिग्मेट दोरजय और स्टांजिन नामज्ञाल का अंतिम संस्कार रविवार को सुरक्षा घेरे में हुआ। मीडिया को जिग्मेट के घर से 200 मीटर पहले रोक दिया गया।
स्थानीय लोग बताते हैं कि लद्दाख में युवाओं की बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। पूर्व संघ अध्यक्ष दोरजे आंगचुक ने कहा कि कोई भर्ती बोर्ड नहीं है, और सरकारी नौकरियां कम हो गई हैं। लगभग 26% युवा बेरोजगार हैं और टूरिज्म ही एकमात्र रोजगार विकल्प है।
चार हजार की जनसंख्या वाले चरवाहों को साल भर अपनी बकरियां चराने के लिए जमीन चाहिए, लेकिन सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए उनका क्षेत्र बेचा जा रहा है। पूर्व काउंसलर गुरमेत दोरजे ने कहा कि चरवाहों की मांगें दरकिनार की जा रही हैं। लोअर लेह के मौजूदा काउंसलर शेरिंग नामज्ञान का कहना है कि लोकतंत्र खत्म हो रहा है; स्थानीय चुनाव नहीं हो रहे और प्रशासनिक नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथ में है।
चार प्रमुख आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजा गया है। हिंसा के दौरान प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी कार्यालय और CRPF की गाड़ी में आग लगा दी थी।
स्थानीय असंतोष के कई कारण हैं। डोमिसाइल नीति से जनता खुश नहीं है, क्योंकि लाभार्थियों की शर्तों को सरकार ने बदल दिया। पुरानी कॉलोनियों की लीज रिन्यू नहीं हुई। अपेक्स बॉडी की अनदेखी और सोनम वांगचुक की संस्था की जमीन रद्द करने से भी लोगों में नाराजगी है।
सांस्कृतिक, रोजगार और भूमि विवाद के कारण छह साल से सुलग रहे मुद्दे हिंसा में फूट पड़े। स्थानीय लोग कहते हैं कि जब तक उनके संवैधानिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकार सुरक्षित नहीं होंगे, तनाव कम नहीं होगा।