
बिपत सारथी@पेंड्रा. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य की सीमाओं का आधार पहाड़ों को किस तरह से नश्ट किया जा रहा है तो ये देखने के लिये मैकल पर्वत श्रृंखला में स्थित अमरकंटक के पहाड़ी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। किसी भी राज्य की सीमा का चिंहाकन नदियों या तो पहाड़ो से किया जाता है यह नदियंा या पहाड़ ही होते है जो राज्यो की सीमाओं को दर्शाने का काम करते है मगर जब इन्ही पहाड़ो को नष्ट कर दिया जाएगा तब राज्य की सीमाओं का कैसे चिन्हांकित किया जाएगा।
दरअसल पूरा मामला छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमावर्ती क्षेत्र करंगरा से सटे हुए इलाके पमरा का है जो दोनों राज्यो की सीमाओं से लगा हुआ है जहाँ पत्थरो का जमकर उत्खनन किया जा रहा है और पहाड़ो को नष्ट करने का कार्य किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि यह सीमावर्ती इलाके जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही मुख्यालय से लगभग चालीस किलोमीटर की दूरी पर है वही सीमा से लगा हुआ अनूपपुर जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 60 किलोमीटर की है इसके साथ ही तहसील मुख्यालय पुष्पराजगढ़ से इसकी दूरी 20 किलोमीटर की है . और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण तथाकथित दूरी होने के कारण प्रकृति को तबाह करने का कृत्य किया जा रहा है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अनूपपुर एवं गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के सीमांओं पर स्थापित स्टोन क्रेसर कुछ छत्तीसगढ़ मे और कुछ मध्यप्रदेश मे संचालित है . यह क्षेत्र बायोस्फियर के अंतर्गत आता है तब सवाल यह खड़ा होता है कि उक्त स्थान पर संचालित उत्खनन किस प्रकार वैध हो सकता है। वहीं अन्तर्राज्यीय स्तर पर खनिज तस्करी को लेकर सियासी बयानबाजी भी षुरू हो गयी है पर इन सबके बीच अमरकंटक के पहाड़ों की खूबसूरती नष्ट हो रही है.