रायपुर की ऐतिहासिक इमारतें: आजादी की लड़ाई की गवाह

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की कई ऐतिहासिक इमारतें आज भी स्वतंत्रता आंदोलन के सुनहरे पलों को समेटे खड़ी हैं। आजादी के दौर में यह छोटा कस्बा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रणनीतियों का अहम केंद्र था। सेनानी यहां गुप्त बैठकों में योजनाएं बनाते थे।
जैतू साव मठ और दूधाधारी मठ स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख अड्डे रहे। 1933 में महात्मा गांधी यहां आए और चबूतरे से प्रवचन दिया। यह स्थान गांधी भवन के नाम से जाना जाता है। यहां गांधी, नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, पटेल जैसे नेता आए थे।
माधवराव सप्रे स्कूल, जिसकी स्थापना 1913 में हुई, सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं बल्कि आंदोलन का गढ़ भी था। यहां से कई स्वतंत्रता सेनानी और बड़े राजनेता निकले।
महाकोशल कला वीथिका, जो 1875 में राजा घासीदास ने बनवाई, पहले म्यूजियम था जिसमें शस्त्र और शिकार की वस्तुएं रखी जाती थीं। आनंद समाज वाचनालय, 1908 में निर्मित, गांधी के 1920 और 1933 के संबोधनों का गवाह है। आज इसे हेरिटेज लाइब्रेरी के रूप में संजोया गया है।
टाउनहॉल, 1887 में निर्मित, स्वतंत्रता सेनानियों की चर्चाओं का केंद्र था। बाद में इसे वंदे मातरम सभा कक्ष नाम दिया गया। ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की सिल्वर जुबली भी यहीं मनाई गई थी।
रायपुर संभाग आयुक्त कार्यालय, 1885 में बना, पहले डिस्ट्रिक्ट काउंसिल भवन था। पं. सुंदरलाल शर्मा और पं. रविशंकर शुक्ल जैसे नेता यहां बैठकों में शामिल होते थे। यह बौद्धिक जागृति का केंद्र माना जाता है। ये सभी इमारतें आज भी स्वतंत्रता संग्राम की कहानियां बयां करती हैं और रायपुर के गौरवशाली इतिहास की जीवंत पहचान हैं।