
रवि तिवारी@देवभोग। गर्मी की धमक के साथ ही धरती की प्यास बढ़ने लगी है। नदी,नाले और छोटे-छोटे तालाब सूखने लगे हैं। पानी का लेयर कम होना इस बात के संकेत हैं कि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में लोगों के समक्ष जल संकट एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ सकती है। पिछले साल की तुलना में कहीं कहीं जलस्तर एक फुट गिरा है। पिछले साल 30 से 35 फुट पर लेयर था। अब 35 से 40 पर चला गया है।
कहीं-कहीं पर अभी से ही हैंडपम्प से पानी निकलना कम हो गया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में पानी का स्तर गिरने से लोगों की परेशानी बढ़ गई है। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर खराब हैंडपम्पों की मरम्मत कराई गई है, पर अभी भी कुछ हैंडपम्प मरम्मत की बाट जोह रहा है। इधर क्षेत्र की जीवनदायिनी माने जाने वाली तेल नदी भी सूखने लगी हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों का तालाब भी सूखने लगा है। माना जा रहा है कि बदले पर्यावरण के कारण वर्षा की मात्रा निरंतर कम होती जा रही है। जिससे भू-जल पर्याप्त नहीं हो पाता है। वहीं भू जल का दोहन किया जा रहा है। परिणामस्वरुप पानी का स्तर नीचे जाने लगा है।
घटता जलस्तर आने वाली पीढ़ी के लिए चिंता का विषय
घट रहे जलस्रोत आनेवाली पीढ़ी के लिए निश्चित रुप से चिंता का विषय है। नदी, तालाब व कुंओं के सूखने का क्रम जारी है। विभागीय स्तर पर इसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। सूखे कुएं व जलाशयों को जीवित करने की जरुरत है। वहीं विभागीय स्तर पर इसे बचाने की दिशा में कोई पहल नहीं की जा सकी है। जबकि जलस्तर को बचाए रखने के लिए सरकारी तालाबों का जिर्णोद्धार किया जाना चाहिए। नदी पर करीबन एक किमी की दूरी पर जलजमाव के लिए चेकडैम बनाने की जरुरत है। वहीं जल संकट से बचाव के लिए विभागीय स्तर से जन जागरुकता अभियान चलाने की जरुरत है। वहीं जल संरक्षण पर भी काम करने की आवश्यकता है।
जलसंकट निवारण के सुझाव
जल का संस्कार समाज में हर व्यक्ति को बचपन से ही स्कूलों में दिया जाना चाहिए। जल, जमीन और जंगल तीनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। इन्हें एक साथ देखने, समझने और प्रबंधन करने की आवश्कयता है। जल संवर्धन/ संरक्षण कार्य को सामाजिक संस्कारों से जोड़ा जाना चाहिए। जल संवर्धन/ संरक्षण के परंपरागत तरीकों की ओर विशेष ध्यानाकर्षण करना। भूजल दोहन अनियंत्रित तरीके से न हो, इसके लिए आवश्यक कानून बनना चाहिए। नदियों और तालाबों को प्रदूषण मुक्त रखा जाए। नदियों और नालों पर चैक डैम बनाए जाए, खेतों में वर्षा पानी को संग्रहीत किया जाए।
जलसंकट के ये हैं कारण
बोरवेल प्रौ़द्योगिकी से धरती के गर्भ से अंधाधुंध जल खींचा जा रहा है। जितना जल वर्षा से पृथ्वी में समाता है, उससे अधिक हम निकाल रहे हैं। साफ एवं स्वच्छ जल भी प्रदूषित होता जा रहा है। जल संरक्षण, जल का सही ढंग से इस्तेमाल, जल का पुनः इस्तेमाल और भूजल की रिचार्जिंग पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस कारण पानी की जलसंकट की स्थिति बन रही है।
गर्मी में जलस्तर घटेगा
देवभोग अनुविभाग के पीएचई एसडीओ अरुण कुमार भार्गव ने बताया कि देवभोग में एक समान जलस्तर नहीं रहता है। विभिन्न जगहों पर भिन्न भिन्न मिलते हैं। वर्तमान में ठीक ठाक जलस्तर है। कुल मिलाकर 30 से 35 फीट है। अप्रैल महीने में सही जलस्तर का पता चलेगा। हालांकि गर्मी में जलस्तर घटना ही है।