
मुंगेली। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र माने जाने बैगा आदिवासियों कि मुसीबते कम होने का नाम नहीं ले रही है, एक तरफ आर्थिक तंगी की मार दूसरे तरफ सरकारी दफ्तरों के चक्करो ने इनका जीना दुर्भर कर दिया है। अपने हक की लड़ाई के लिए लोरमी सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने के बाद उम्र के आखिर पड़ाव पर भी जिला मुख्यालय में सुबह से शाम बैठने को मजबूर इन आदिवासियों को महज आश्वासन पर ही निराश लौटना पड़ता है।
लगभग साल 2004 से वन अधिकार पट्टे कि मांग पर बैठे इन लोगो कि यही मांग है कि ज़ब 50 लोगों का नाम चयनित हो गए। महज कुछ लोगों को ही पट्टा बांटा गया। बाकि लोग अभी भी दफ्तरो के चक्कर लगा रहे हैं। कलेक्ट्रेट पहुँचे ग्रामीणों में कुछ तो उम्र के उस पड़ाव पर है जिनकी आधी उम्र अपना हक मांगते मांगते ही गुजर गईं। पर सत्ता किसी की रही हो उन्हें महज निराशा ही हाथ लगी है,,