Dhamtari: पढ़िए इस गांव की कहानी…. कभी था लाल आंतक का खौफ, अब आदिवासी परंपरा की बहार

संदेश गुप्ता@धमतरी। (Dhamtari) जिले में माओवादियों का गढ़ माने जाने वाले रिसगांव में अब लाल आंतक खौफ खत्म होने लगा है. हाल ही में यहां काफी बरस बाद परंपरागत मेले का आयोजन हुआ. जिसमें 50 गांव के लोग शामिल हुए और जंगल में आदिवासी परंपरा की बहार खिलती दिखी. तमाम दुश्वारियों के बावजूद लोग अपनी पुरातन संस्कृति को सहेजने के लिये अडिग हैं.

(Dhamtari) सिहावा क्षेत्र का रिसगांव नक्सलियों का गढ़ माना जाता है.  (Dhamtari) इस 2009 में माओवादी हमले में यहां 13 पुलिस जवानो की शहादत हुई थी. अभी कुछ दिनो पहले ही.. नक्सलीयो ने एक युवक की मुखबीरी के शक में हत्या की थी. इस इलाके में किसी अनजान आदमी का आना जाना  मतलब जान का खतरा मोल लेना था. लेकिन अब शायद हवा का रूख बदल रहा है. बरसों बाद चीजें सामान्य होने लगी है.

 रिसगांव के जंगल में बरसो बाद जुटी ये भीड़ और उसका उत्साह तो कम से कम यहीं बयान कर रहा है. ये इस क्षेत्र की यानी मेला है. जिसमें आदिवासी गोंड अपने देवी देवताओ का आह्वान करते हैं. उत्सव मनाते हैं. इस मेंले में अब फिर से पुरानी रौनक लौट गई है.  यहां 50 गांव से लोग पहुंचे हैं. जिनमें महिला, बच्चे और बुजुर्ग सभी शामिल है. किसी के भी चेहरे पर कोई खौफ नहीं है.

यहां आए लोगो ने बताया कि भले ही ये नक्सली इलाका है लेकिन ये मेला ये परंपरा उनके पुरखो की दी गई विरासत है. जिसे वो किसी भी कीमत पर खत्म नहीं होने दे सकते. नक्सली चाहे कितनी भी चुनौतिया खड़ी कर ले. लेकिन सदियो पुरानी परंपरा आगे ही बढ़ती जाएगी. इनका उत्साह देख कर कहा जा सकता है कि लाल आतंक भले बंदूक और बारूद के दम पर कितना भी इतरा ले. लेकिन आदिवासियों के जहन में बसी उनकी आस्था, संस्कृति की ताकत के सामने आतंक अब घुटने टेकने लगा है.

Exit mobile version