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चुनावी बांड: बीजेपी की हिस्सेदारी 57 फीसदी, कांग्रेस की 10 फीसदी

नई दिल्ली। चुनावी बांड से 2021-22 तक सभी राजनीतिक दलों को मिलाकर 9,188 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा मिला, जिसमें से अकेले भाजपा का योगदान 57 प्रतिशत से अधिक था, जबकि कांग्रेस का योगदान 10 प्रतिशत था। एडीआर डेटा.

2016-17 और 2021-22 के बीच, पिछले वर्ष, जिसका डेटा उपलब्ध है, सात राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बांड के माध्यम से कुल 9,188.35 करोड़ रुपये का दान प्राप्त हुआ।
इसमें से बीजेपी को 5,272 करोड़ रुपये और कांग्रेस को 952 करोड़ रुपये मिले, जबकि बाकी अन्य पार्टियों के पास चले गए.

2017 में एडीआर ने दायर की थी पहली याचिका

चुनावी गतिविधियों पर नजर रखने वाली गैर-सरकारी संस्था (NGO) एसोसिएशन पर फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) ने 2017 में इस मामले में पहली जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी जैसे आरोप लगाए गए थे और मुद्दे पर एक अंतरिम अर्जी दायर कर मांग की गई थी कि चुनावी बांड की बिक्री फिर से न खोली जाए. 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और एनजीओ की ओर से दायर अंतरिम आवेदन पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था.

उधर, सुनवाई से पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने एक बयान में कहा है कि नागरिकों को धन के स्रोत के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत जानकारी का अधिकार नहीं है.

कौन खरीद सकता है चुनावी बॉन्ड?

योजना के प्रावधानों के अनुसार, भारत का कोई भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकती है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ साझा रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है. इसके बाद बॉन्ड के जरिये पसंद की पार्टी को चंदा दिया जा सकता है. कोई भी व्यक्ति चुनावी बॉन्ड तभी खरीद सकता है जब उसका केवाईसी वेरिफाई किया जा चुका हो. इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने के लिए केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की अधिकृत बैंक है.

कौन सी पार्टी प्राप्त कर सकती है चुनावी बॉन्ड?

चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने के लिए किसी दल का जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत (रजिस्टर्ड) होना जरूरी है. इसके अलावा राजनीतिक दल ने पिछले लोकसभा या राज्य विधानसभा के चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट शेयर हासिल किया हो. पात्र राजनीतिक दल केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से चुनावी बॉन्ड भुना सकता है. वर्तमान में राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड से मिले चंदे और 20 हजार रुपये कम का चंदा देने वाले दाताओं की डिटेल घोषित करना जरूरी नहीं है.

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर रोक लगाने से किया था इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 में चुनावी बांड योजना पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया था और साफ कर दिया था कि वह याचिकाओं पर गहन सुनवाई करेगा. केंद्र और चुनाव आयोग ने पहले राजनीतिक चंदे को लेकर कोर्ट में विपरीत रुख अपनाया था. सरकार दानदाताओं की गुमनामी बनाए रखना चाहती थी और चुनाव आयोग पारदर्शिता के लिए उनके नामों का खुलासा करने पर जोर दे रहा था.

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