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छत्तीसगढ़: खनिज संपदा से आर्थिक समृद्धि और विकास का मॉडल

रायपुर। छत्तीसगढ़ यह नाम अब केवल हरियाली और संस्कृति का पर्याय नहीं रहा, बल्कि भारत की खनिज राजधानी के रूप में भी अपनी पहचान बना चुका है।

देश के कुल खनिज भंडार का बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ में स्थित है। राज्य की अर्थव्यवस्था में खनिज क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत है। राज्य गठन के समय खनिज राजस्व 429 करोड़ रुपए था, जो अब 14,592 करोड़ रुपए तक बढ़ चुका है, यानी 25 वर्षों में यह 34 गुना बढ़ा।

वन और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखते हुए केवल 0.21 प्रतिशत भूमि का खनन के लिए उपयोग किया गया, जबकि कटाई के साथ 5-10 गुना वृक्षारोपण अनिवार्य किया गया। इससे राज्य के वन क्षेत्र में 68,362 हेक्टेयर की वृद्धि हुई, जो राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक है।

मुख्य खनिजों में कोयला, देश के ऊर्जा क्षेत्र का अहम स्रोत है। राज्य में 74,192 मिलियन टन कोयला भंडार है, जो देश के कुल भंडार का 20.53 प्रतिशत है। इसके अलावा, लौह अयस्क में छत्तीसगढ़ का योगदान राष्ट्रीय उत्पादन का 16.64 प्रतिशत है। NMDC की बैलाडीला और दल्लीराजहरा खदानें देश के इस्पात उद्योग की जीवनरेखा हैं।

राज्य में बाक्साइट, चूना पत्थर, टिन, डोलोमाइट, स्वर्ण और हीरा जैसे खनिज भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ये खनिज इस्पात, सीमेंट, ऊर्जा, निर्माण और रक्षा उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। गौण खनिजों से राज्य को स्थानीय राजस्व, रोजगार और पंचायत निधि का बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ ने खनिज संपदा के विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन स्थापित किया है। खनिज विकास से राज्य को आर्थिक समृद्धि, रोजगार और उद्योगों में आत्मनिर्भरता मिली है, जबकि वन क्षेत्र और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की गई है। यह मॉडल पूरे देश के लिए सस्टेनेबल ग्रोथ का उदाहरण बन चुका है।

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