
रविकांत तिवारी@देवभोग … आपने आज तक रसूखदारों को लगान वसूलते सुना होगा, लेकिन देवभोग में स्थापित भगवान जगन्नाथ आज भी 94 गांव के अपने भक्तों से लगान वसूल रहे हैं। ये लगान 94 गांव के श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से हर साल रथयात्रा से ठीक पहले प्राण-प्रतिष्ठा के दिन भगवान जगन्नाथ को भोग के रूप में धान लाकर मंदिर में देते हैं। वसूले गए लगान का भोग भगवान को लगाया जाता है। प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अंचल के लोगों के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस भंडारे में अंचल के 100 से भी ज्यादा गांव के लोग शामिल होकर प्रभु का दर्शन करते हैं।
हर साल पुरी के लिए जाता है भोग : मंदिर के पंडित शरद चंद्र बेहेरा ने बताया कि इस मंदिर का पौराणिक युग से अपना ही एक अलग महत्व हैं। यहां का भोग हर साल पुरी के लिए जाता है। वहीं रथयात्रा से पहले पुरी में देवभोग मंदिर का भोग वहां लगाया जाता हैं। जिसके चलते नगर का नाम देवभोग पड़ा। आज भी पुरी के पंडा मंदिर आते हैं। भोग के लिए उन्हें जो राशि दी जाती है उसे लेकर वे पुरी तक पहुंचते है। देवभोग के मंदिर में राजाकाल से ही प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही भंडारे का आयोजन शुरू से होता आया है। इस मंदिर का सीधा जुड़ाव पुरी के मंदिर से है। ऐसे में आदिकाल से ही मंदिर में हो रहे पूजा-पाठ को हर साल विधि-विधान से संपन्न करवाया जा रहा है।
बेल और चिवड़ा से हुआ मंदिर का निर्माण-:
मंदिर के पदाधिकारियों ने बताया कि मंदिर का निर्माण 1854 से शुरू हुआ। वहीं 1901 में मंदिर पूरा हुआ। जिसके बाद 1901 में प्रभु जगन्नाथ का प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम कर उसी दिन से पूजा-पाठ शुरू किया गया। उस दौरान मंदिर का निर्माण करते समय बेल और चिवड़ा का उपयोग किया था। बेल के मसाले के साथ ही चिवड़ा को मिलाकर उससे जोड़ाई कर मंदिर का निर्माण किया गया है…
इसलिए देवभोग नाम पड़ा- 18 वी शताब्दि में इस जगह का नाम कोसूमभोग था,1854 में जब मिच्छ मूंड पूरी से जगन्नाथ जी की दारू ब्रम्ह स्वरूप एकल मूर्ति को लेकर आये तो उसका पूजा पाठ शुरू हो गया।1870 से 1890 के बीच लोग भगवान में भोग चढ़ाना शुरू कर दिये थे।मूर्ति के यशगान पूरी तक पहूच चुकी थी। इलाके में काला मूंग की बम्फर पैदावारी हुआ करती थी ,जो भगवान को चढ़ावा चढ़ने लगा।फिर यह भी तय हुआ कि मंदिर में चढ़ने वाले काला मूंग पूरी भी जाएगा।भगवान के भोग के लिए काला मूंग पूरी जाने लगा।18 वी शदी में ही इसका नाम कुसुम भोग से देवभोग करने का उल्लेख जगन्नाथ मंदिर में मौजूद ताड़ पत्र के अभिलेख में दर्ज है।