बोधघाट सिंचाई परियोजना: बस्तर के गरीब किसान बनेंगे लखपति

बस्तर। बस्तर संभाग दशकों तक नक्सली हिंसा से प्रभावित रहा, जिससे क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और सिंचाई साधनों का विकास रुक गया था। वर्तमान में कुल 8.15 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से केवल 1.36 लाख हेक्टेयर भूमि में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन अब बस्तर में तेजी से बदलाव की बयार बह रही है, और बोधघाट सिंचाई परियोजना इस विकास को गति देने वाली एक निर्णायक योजना बनकर उभर रही है।
क्या है बोधघाट परियोजना
बोधघाट परियोजना इंद्रावती नदी पर आधारित एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1980 में हुई थी। प्रारंभ में इसका उद्देश्य केवल जलविद्युत उत्पादन था, पर बाद में सिंचाई सुविधा को भी इसमें शामिल किया गया। यह परियोजना बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर, राजनांदगांव, कवर्धा और मुंगेली जैसे जिलों में सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होगी।
बोधघाट परियोजना का शिलान्यास 21 जनवरी 1979 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा किया गया था। लेकिन 1980 में वन संरक्षण अधिनियम लागू होने और नक्सलवाद के उभार के चलते यह योजना रुक गई। ग्रामीणों के भूमि अधिग्रहण विरोध के कारण भी इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका।
परियोजना से संभावित लाभ
- 359 गांवों को सिंचाई सुविधा मिलेगी
- 3,78,475 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होगी
- 125 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा
- 4824 टन मछली उत्पादन द्वारा ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा
- 49 मिलियन घनमीटर पेयजल की आपूर्ति संभव होगी
- इसके लिए कुल 13,783 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है, जिसमें वन, निजी और सरकारी जमीन शामिल है।
प्रधानमंत्री से हुई चर्चा, तेजी से बढ़ेगा काम
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस परियोजना की चर्चा की। पीएम मोदी ने इसे मंजूरी देते हुए केंद्रीय सिंचाई मंत्री के सामने प्रेजेंटेशन देने का सुझाव दिया। इससे यह परियोजना केंद्र की प्राथमिकता में आ गई है। बोधघाट के साथ-साथ इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना से कांकेर जिले सहित 3 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सुविधा सुनिश्चित होगी। इससे बस्तर के किसान लखपति बनने की राह पर अग्रसर होंगे। कृषि उत्पादन, रोजगार और जल संसाधनों की उपलब्धता में व्यापक सुधार होगा।