नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सात जजों की बेंच ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए 5 जजों के फैसले को पलट दिया। उन्होंने बहुमत से फैसला दिया है कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में वो सब कैटेगरी बना सकती है.. जिन कैटेगिरी को ज्यादा आरक्षण का फायदा मिलेगा… चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया।
बता दें कि साल 2004 में दिये गए उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती। वहीं इस बार चीफ जस्टिस समेत छह जजों ने बहुमत के फैसले पर कहा कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में वो सब कैटेगरी बना सकती है, जिन कैटेगरी को ज्यादा आरक्षण का फायदा मिलेगा। जबकि जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने इस फैसले के उलट फैसला दिया।
इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा हैं। कोर्ट ने 8 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर तीन दिन सुनवाई की थी।
क्रीमी लेयर को SC-ST कोटे से बाहर करना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह भी कहा है कि, राज्यों को SC-ST कोटे से क्रीमी लेयर को भी बाहर करना चाहिए। क्योंकि SC-ST के क्रीमी लेयर (संपन्न वर्ग) के बच्चों की तुलना गांव में मैला ढोने वाले SC-ST व्यक्ति के बच्चों से नहीं की जा सकती। ऐसा करना बेईमानी होगी। इसलिए राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए।
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि, राज्य को एससी एसटी श्रेणी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के दायरे से बाहर करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए। सच्ची समानता हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है। वहीं जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि, ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर सिद्धांत एससी-एसटी पर भी लागू होता है।
वहीं जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि, आरक्षण केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित होना चाहिए। यदि पहली पीढ़ी का कोई सदस्य आरक्षण के माध्यम से उच्च स्थिति तक पहुँच गया है, तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का हकदार नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि वह न्यायमूर्ति गवई के दृष्टिकोण से सहमत हैं कि एससी/एसटी के रूप में क्रीमी लेयर की पहचान का मुद्दा राज्य के लिए एक संवैधानिक अनिवार्यता बन जाना चाहिए।