
रायपुर. उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ ने आज 19सितंबर को वर्ष 2012 में,राज्य शासन के द्वारा आरक्षण के प्रतिशत में वृद्धि के मामले में अपना निर्णय सुनाया है,राज्य शासन ने इस निर्णय से असहमत होते हुए यह निर्णय लिया है कि इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा।
राज्य शासन का यह मानना है कि यद्यपि वर्ष 2012 में समुचित रूप से इस मामले में तथ्य तत्कालीन सरकार में पेश नहीं किए थे मगर फिर भी छत्तीसगढ़ राज्य में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण प्रतिशत को देखते हुए,राज्य सरकार उपरोक्त फ़ैसले से पूरी तरह असहमत हैं।
राज्य सरकार यह मानती है कि उपरोक्त निर्णय से राज्य के आरक्षित वर्ग में समुचित विकास के मार्ग में बाधित होगा। उक्त निर्णय से राज्य सरकार सहमत नहीं है एवं राज्य सरकार निर्णय को चुनौती देते हुए आरक्षित वर्ग को न्याय दिलाने में साथ खड़ी है।
यह अत्यंत ही दुर्भाग्य का विषय है कि तत्कालीन राज्य सरकार ने इस मामले को बिना किसी तथ्य के जानबूझकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की आबादी के विकास एवं आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ करते हुए न्यायालय के समक्ष अधूरे तथ्य प्रस्तुत किए, जो दस्तावेज़ एवं रिकॉर्ड भी तत्कालीन राज्य सरकार के पास उपलब्ध थे, उन्हें भी तत्कालीन राज्य सरकार ने जानबूझकर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया था, मगर वर्तमान सरकार ने उक्त संबंध में समस्त तथ्यों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की अनुमति भी माँगी थी, जिसे इस आधार पर मना किया गया कि चूंकि पूर्व में राज्य सरकार को समय देने के बावजूद भी वह मौक़ा होने के बावजूद भी तत्कालीन सरकार ने जवाब में सभी तथ्यों का उल्लेख नहीं किया. इसलिए अब उसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। परन्तु किसी भी सूरत में समझ के अनुसूचित जाति एवं जनजाति के हितों की रक्षा के लिए क़ानून की अंतिम सीढ़ी तक लड़ाई लड़ी जाएगी एवं जो भी आवश्यक हो क़दम उठाए जाएंगे