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जांजगीर-चांपा

Bhojali festival: बरसों से चली आ रही मान्यता, गांव में भोजली त्यौहार की धूम, जानिए इसका महत्व

लाला उपाध्याय@जांजगीर चांपा।  (Bhojali festival)जिले के नवागढ़ विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत कुथूर में  प्रत्येक वर्ष श्रावण मास मे भोजली उत्सव मनाया जाता है।

छत्तीसगढ़ की ऐतहासिक परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. उसी परंपरा को गांव के लोग निभाते हैं।

सावन मास में कुछ दिन पहले गांव में बुनियादी कर लोगों को भोजली लगाने के लिए कहा जाता है ।

(Bhojali festival)फिर सावन मास के अंतिम में पूर्णिमा के दिन पूरे गांव में गली मोहल्लों में जा जाकर भोजली लगाए रहते हैं।

उनको सभी को इकट्ठा कर गांव के लोग करतब दिखाकर तालाब में भोजली का विसर्जन करते हैं।

विसर्जन करने के पश्चात थोड़ा-थोड़ा भोजली को लेकर आते हैं।

एक दूसरे को भेंट करते हैं और भगवान पर भी भोजली को चढ़ाया जाता है।

(Bhojali festival)घरों में भी लेकर आते हैं। सभी देवी देवताओं पर भोजली को चढ़ाते हैं।

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ऐसी मान्यता बरसों से चली आ रही है तथा भोजली उत्सव का आनंद उठाते हैं

इस वर्ष भी भोजली का पर्व ग्राम पंचायत कुथुर में बड़े धूमधाम से मनाया गया।

भोजली का अर्थ

भोजली याने भो-जली। इसका अर्थ है भूमि में जल हो।

यहीं कामना करती है महिलायें इस गीत के माध्यम से। इसीलिये भोजली देवी को अर्थात प्रकृति के पूजा करती है।

छत्तीसगढ़ में महिलायें धान, गेहूँ, जौ या उड़द के थोड़े दाने को एक टोकनी में बोती है।

उस टोकनी में खाद मिट्टी पहले रखती है।

उसके बाद सावन शुक्ल नवमीं को बो देती है। जब पौधे उगते है, उसे भोजली देवी कहा जाता है।

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रक्षा बन्धन के बाद भोजली को ले जाते हैं

नदी में और वहाँ उसका विसर्जन करते हैं।

अगर नदी आसपास नहीं है तो किसी नाले में या तालाब में, भोजली को बहा देते हैं।

इस प्रथा को कहते हैं – भोजली ठण्डा करना। भोजली के पास बैठकर बधुएं जो गीता गाती हैं,

उनमें से एक गीत यह है – जिसमें गंगा देवी को संबोधित करते हुए गाया जाता है – देवी गंगा …देवी गंगा लहर तुरंगा

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