चेन्नई में समुद्रयान आकार ले रहा: 50 प्रतिशत पार्ट्स अब स्वदेशी, 4 घंटे में 6 किमी गहराई तक पहुंचेगी वैज्ञानिक पनडुब्बी

चेन्नई। चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) में देश का पहला मानवयुक्त समुद्री मिशन समुद्रयान तेजी से आकार ले रहा है। इसके कई अहम हिस्सों की असेंबली अंतिम चरण में है। पहले समुद्रयान के सभी पार्ट्स विदेश से आयात होने थे, लेकिन कोविड और वैश्विक तनावों के कारण सप्लाई बाधित हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि अब इसके 50% पार्ट्स भारतीय संस्थानों में ही विकसित किए जा रहे हैं।
NIOT के उपनिदेशक एस. रमेश के मुताबिक समुद्रयान का बेसिक फ्रेम, मत्स्य-6000, नेविगेशन- कम्युनिकेशन सिस्टम और कंट्रोल सॉफ्टवेयर पूरी तरह भारत में तैयार किए गए हैं। कैमरा, सेंसर और सिंटेक्टिक फोम जैसी कुछ तकनीकें ही आयात करनी पड़ीं। समुद्रयान का टाइटेनियम मिश्रधातु से बना मुख्य ढांचा NIOT के असेंबली हॉल में पहुंच चुका है, जिसे इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग तकनीक से बनाया गया है। यह भारत में पहली बार हुआ है।
2026 में 30 मीटर, 200 मीटर और 500 मीटर की गहराई पर समुद्रयान के तीन बड़े परीक्षण होंगे। सभी उपकरणों का सर्टिफिकेशन नार्वे की एजेंसी DNV से मिल चुका है। यह प्रोजेक्ट भारत के डीप ओशन मिशन का हिस्सा है, जिसके तहत मत्स्य-6000 पनडुब्बी में 3 वैज्ञानिकों को 6,000 मीटर गहराई तक भेजा जाएगा।
समुद्रयान को सागर निधि जहाज से हिंद महासागर तक ले जाया जाएगा। यह 30 मीटर प्रति मिनट की रफ्तार से उतरता हुआ लगभग 4 घंटे में गहराई तक पहुंचेगा और नमूने लेने, सर्वे और स्कैनिंग जैसे कार्यों के लिए 4 घंटे का समय मिलेगा। मत्स्य-6000 में 3 एक्वानॉट 12 घंटे तक सामान्य परिस्थितियों में रह सकते हैं, जबकि आपात स्थिति में यह क्षमता 96 घंटे तक है।
दो एक्वानॉट जतिंदर पाल सिंह और राजू रमेश पहले ही तय हो चुके हैं। तीसरे एक्वानॉट के लिए NIOT के तीन वरिष्ठ वैज्ञानिकों में से चयन होगा। यह मिशन भारत को उन 14 देशों की सूची में और मजबूत बनाएगा, जिन्हें UN की ISA ने डीप सी रिसर्च की अनुमति दी है।





