भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता विफल: टैरिफ, राजनीतिक गलतफहमी और अति-आत्मविश्वास बना कारण

दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच पांच दौर की व्यापार वार्ता आखिरकार नाकाम हो गई। दोनों देशों के बीच करीब 190 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के बावजूद, तकनीकी सहमति के बाद भी अंतिम समझौता नहीं हो सका।
भारतीय अधिकारियों को उम्मीद थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 1 अगस्त से पहले समझौते की घोषणा करेंगे। इतना ही नहीं, भारत ने संकेत दिए थे कि टैरिफ को 15% तक सीमित किया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वार्ता विफल होने के पीछे राजनीतिक गलतफहमियां, संकेतों की गड़बड़ी और कुछ कटुता प्रमुख कारण रहे। अमेरिका ने जापान, यूरोपीय संघ और यहां तक कि पाकिस्तान के साथ सौदे किए, लेकिन भारत से रियायतें नहीं मिल सकीं।
भारत ने औद्योगिक वस्तुओं पर शून्य टैरिफ की पेशकश की थी और अमेरिकी कारों व शराब पर धीरे-धीरे टैरिफ कम करने को तैयार था। साथ ही ऊर्जा और रक्षा आयात बढ़ाने की मांग भी मानी थी। फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समझौता करने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन ट्रंप के “बड़े सौदे” की बात से भारत अति-आत्मविश्वासी हो गया। भारत कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर रियायत देने को तैयार नहीं था।
जब अमेरिका ने अन्य देशों से समझौते किए, तब भारत ने उम्मीद की थी कि उसे कम रियायतों में 15% टैरिफ मिल जाएगा, लेकिन व्हाइट हाउस इसके लिए तैयार नहीं था। एक अधिकारी ने माना कि भारत, दक्षिण कोरिया जैसी रियायतें देने को तैयार नहीं था, जिसने आखिरी समय में बड़ी पेशकश कर समझौता किया।