Jannah Theme License is not validated, Go to the theme options page to validate the license, You need a single license for each domain name.
Uncategorized

देशी धान बनेगी छत्तीसगढ़ की पहचान,हर जिले में एक देशी बीज उत्पादन केंद्र होगा शुरु

दुर्गा प्रसाद सेन@बेमेतरा. पूरे देश में छत्तीसगढ़ धान का कटोरा के रूप में पहचान रखता है। यहां धान की बहुत सारे किस्में मौजूद हैं। पर वर्तमान समय में अधिकांश कई किस्में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। तब समृद्धि देशी बीज संरक्षण समिति ने किसानों के साथ मिलकर इन्हें सहेजने की योजना बनाई है। इस बीज संरक्षण समिति की कार्य को बीज मित्र की मदद से पूरी की जाएगी। महज 15-20 साल पहले तक जो जवा फूल, बादशहभोग, दुबराज, विष्णु भोग,लुचई, लायचा, गठुवन, श्रीकम्ल, लोकती माझी, रेडराइस, कुबरी ममहानी जैसी देशी धान की किस्में छत्तीसगढ़ राज्य की पहचान थी। परंतु बढ़ते मांग को पूरा करने लिए अधिक पैदावार लेने की आवश्यकता होने लगी जिसके कारण किसानों ने महामाया, स्वर्णा, जैसी किस्मों को उगने लगी। सरकार भी समर्थन मूल्य पर इन्हें खरीदने की व्यवस्था कर दी। ऐसे हालात में देशी धान की कई किस्में आज विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। कुछ तो कई किसानो के घर और गांव से गायब हो गई हैं।

यदि कहीं कुछ किसान के पास हैं तो वो सीमित क्षेत्र में उगा रहे हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए इस साल समृद्धि देशी बीज संरक्षण समिति नवागढ़ ने इन्हें सहेजने का बीड़ा उठाया हैं तथा हर जिले में एक देशी बीज उत्पादन केंद्र स्थापित किया जाएगा ।

देशी बीज संरक्षण समिति के संस्थापक अध्यक्ष किशोर राजपूत ने बताया कि समिति के सदस्यों ने छत्तीसगढ़ राज्य के अलग-अलग जिलो में जाकर वहा के वातावरण में उगने वाले पारंपरिक व गुणवत्ता युक्त किस्मों की पहचान करनी शुरू की हैं। उन किसानों के पास जो देशी धान के बीच हैं, उनको लेकर खेत पर रोपा जाएगा, फसल तैयार हुई तो उसके बीज सहेजे जाएंगे। तथा समिति देशी धान की पैदावार लेने किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

प्राकृतिक तत्वों से भरपूर और लागत कम

कृषि विशेषज्ञ और किसान देवी प्रसाद वर्मा ने बताया कि देशी धान की खेती और बीज उत्पादन के लिए रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती है इसलिए तो इसमें स्टार्च की मात्रा हाई ब्रीड धान से भी अधिक होती है। इसके अलावा देशी धान की बालियों में छोटा व पतला दाना है लगता हैं जो प्राकृतिक तत्वों से भरपूर होता है। साथ ही साथ धान की खेती करने के लिए बाजार पर निर्भरता नहीं होती है और नई वैरायटी की तुलना में इसका उत्पादन लागत कम आती है।

अनुवांशिकी एवम पादप प्रजनन विभाग इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के क़ृषि वैज्ञानिक डॉक्टर सत्यपाल सिंह ने पारंपरिक देशी धान की खेती में हाईब्रिड की तुलना में तीन गुना कम पानी की जरूरत पड़ती है। कम बारिश हुई तब भी फसल अच्छी होती है।हर जीव के लिए भरपूर पोषक तत्वों से युक्त भोजन सिर्फ देशी बीजों से ही मिल सकता हैं इसलिए देशी बीजों का संरक्षण जरूरी है।

Related Articles

Back to top button