तेलंगाना में 57 प्रतिशत कमाई चुनावी वादों में, अन्य राज्यों में भी वित्तीय दबाव

दिल्ली। आगामी चुनावों के मद्देनजर भारतीय राज्यों की सरकारें बड़े पैमाने पर चुनावी वादों को पूरा करने में अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा लगा रही हैं। आंकड़ों के अनुसार, बिहार में अब तक ₹33,920 करोड़ के वादे किए जा चुके हैं, जिन पर खुद की कमाई का 62.46% खर्च होने का अनुमान है। इस तरह अगर ये वादे पूरी तरह लागू किए गए, तो सरकार का खर्च कुल कमाई से 133% अधिक हो जाएगा।
तेलंगाना सरकार की स्थिति और गंभीर है। यहां की कमाई का 57% हिस्सा चुनावी वादों को पूरा करने में जा रहा है। इसके अलावा वेतन-भत्तों और ब्याज अदायगी में 80% हिस्सा खर्च होता है। लाड़ली बहन जैसी योजनाओं पर 22% राशि जाती है। इसका सीधा असर बुनियादी सेवाओं जैसे सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा पर पड़ रहा है।
कर्नाटक सरकार की कमाई का 35% चुनावी वादों में और 40% वेतन, पेंशन तथा कर्ज के ब्याज में खर्च हो रहा है। इससे राज्य सरकार को सड़कों और अन्य अवसंरचना परियोजनाओं के लिए बजट जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश में कमाई का 42% हिस्सा वेतन और ब्याज में और 27% मुफ्त योजनाओं में जा रहा है। छत्तीसगढ़ में भी कमाई का 18% चुनावी वादों पर खर्च हो रहा है, जिससे स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च कम हुआ है।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्य बाजार से कर्ज लेकर सोशल वेलफेयर और चुनावी वादों को पूरा कर रहे हैं। आरबीआई ने भी चेताया है कि इस तरह का अत्यधिक खर्च राज्यों की वित्तीय सेहत को कमजोर कर सकता है। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकारें अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा वादों और वेतन-भत्तों में खर्च करती रहें, तो बुनियादी जरूरतों के लिए बजट जुटाना मुश्किल हो जाएगा।