दिल्ली। देश के 12 राज्यों में 51 करोड़ से अधिक मतदाताओं के घर दस्तक देने वाले 5.32 लाख से अधिक बीएलओ पर काम का दबाव लगातार बढ़ रहा है। हाल ही में 22 दिनों में सात राज्यों में 25 बीएलओ की मौत ने चिंता बढ़ा दी है। मध्य प्रदेश में नौ बीएलओ की जान गई, जबकि उत्तर प्रदेश और गुजरात में चार-चार बीएलओ की मौत हुई। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने केवल अपने राज्य में 34 लोगों की मौत का दावा किया है।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि आयोग अगर बीएलओ पर काम के दबाव और तकनीकी कठिनाइयों पर ध्यान दे तो स्थिति में सुधार हो सकता है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में बीएलओ को एप में कैप्चा भरना मुश्किल कर रहा था, जिसे हटाने से काम आसान हुआ।
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में जहर खाकर जान देने वाले बीएलओ विपिन यादव के पिता ने बताया कि बेटे पर ओबीसी मतदाताओं के नाम हटाने और सामान्य वर्ग के नाम बढ़ाने का दबाव बनाया गया। ऐसे दबाव के कारण बीएलओ मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
राजनीतिक बयानबाजी भी जारी है। राहुल गांधी ने कहा कि SIR के नाम पर पिछड़े और वंचित वोटरों को हटाकर भाजपा वोटर लिस्ट तैयार कर रही है। वहीं, भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने इसे झूठा बताया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मृतक बीएलओ के परिवार को मुआवजा देने की बात कही।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIR को चुनौती देना संभव नहीं है और आयोग के पास मतदाता सूची की शुद्धता जांचने का संवैधानिक अधिकार है। न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि आधार केवल लाभ पाने का साधन है, मतदाता बनने का स्वतः प्रमाण नहीं।
इस बीच, चुनाव आयोग बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय पर विरोध-प्रदर्शन को गंभीर सुरक्षा उल्लंघन मानते हुए 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी है। देशभर में SIR के तहत बीएलओ पर लगातार काम का दबाव और सुरक्षा चिंताएं बढ़ रही हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ रहा है।
