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मनीष शरण@बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर रेलवे जोन के अंतर्गत भनवार टंक रेल सुरंग की हालत इतनी जर्जर हो गई है कि, यहां कोई भी बड़ा हादसा किसी भी दिन हो सकता है । तकरिबन 115 साल से भी अधिक का समय बीत जाने के बावजूद आज भी यह ऐतिहासिक सुरंग इस्तेमाल किया जा रहा है। अंग्रेजों के जमाने में बने सुरंग की बनावट पुराने ट्रेनों और उनके आकारों के हिसाब से बनी थी…. मौजूदा समय पर बड़े इंजन, बड़ी बोगियां और वृहद किस्म की दुलाई वाहन यहां से गुजरते हैं, जिनकी वजह से इस सुरंग की हालत और भी खराब होती जा रही है। इन सबके बावजूद बिलासपुर रेलवे जोन जोकि, हर साल तकरीबन 36000 करोड रुपए केवल माल ढुलाई से कम आता है… और सबसे ज्यादा कमाई करने के खिताब भी इसी जोन के पास है, बावजूद इसके इस बेहद गंभीर अवस्थाओं को दुरुस्त करने के बजाए इससे नजरें चुराकर,,, किसी बड़े हादसे को न्योता दिया जा रहा है।
N 1. तकरिबन 115 साल पहले बनी इस सुरंग का डिजाइन गोल और बड़े पाइप जैसा है। गोलाई उस समय चल रही ट्रेनों के इंजन और बोगियों के हिसाब से बनाई गई होंगी। अब हाई टेक्निक एलएचबी कोच अा गए हैं। ये डोलने पर सुरंग की दीवारों से रगड़ खाने लगे हैं। इसलिए भी ट्रेनों को 10 की स्पीड से गुजारा जा रहा है, ताकि कोच यदि रगड़ भी खाएं तो नुकसान न हो। इन सुरंग में हैलोजन लाइट्स के लिए लगाए गए केबल जगह-जगह से खुले हुए हैं। कोच के सुरंग की दीवारों से टकराने का एक खतरा यह भी है कि यदि कोच टकराकर खुले तार के संपर्क में आए तो करंट भी फैल सकता है।
115 साल पहले बनाई गई बेहद महत्वपूर्ण और प्रदेश की सबसे ऊंचाई पर बनी 331 मीटर लंबी सुरंग
रायपुर से कटनी यानी उत्तर भारत जाने वाली ट्रेनों के सबसे पुराने रूट पर बिलासपुर से पेंड्रा के बीच ऊंची पहाड़ियां और बेहद घना जंगल है। इस रेलवे ट्रैक पर भनवारटंक स्टेशन से करीब 5 किमी दूर डाउन लाइन पर 115 साल पहले बनाई गई बेहद महत्वपूर्ण और प्रदेश की सबसे ऊंचाई पर बनी 331 मीटर लंबी सुरंग अब दरकने लगी है। ईंटों से बनी सुरंग की दीवारों में दरारें पड़ रही हैं, प्लास्टर उखड़कर गिरने लगा है।
100 साल से अधिक पुरानी होने की वजह से अब सुरंग की ईंटें घुलने लगी
कई जगह पुरानी ईंटे घुलने लगी हैं। पुरानी होने की वजह से इस सुरंग का आकार भी नए एलएचबी कोच के लिए पर्याप्त नहीं है। जर्जर होने की वजह से रेलवे इस सुरंग से ट्रेनों को 10-15 किमी प्रतिघंटे की स्पीड से गुजारने लगा है, ताकि कोई खतरा न हो, इस सुरंग में जगह ट्रेनों को बेहद धीमी गति से निकाला जाता है वही पटरी और सुरंग के दीवारों की हालत देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसे मरम्मत की कितनी दरकार है।
अपलाइन सुरंग 1966 की स्थिति से बेहतर है और जल्द ही इसे और बेहतर बनाए जाने की योजना
लाइन दोहरीकरण के दौरान 1966 में यहीं अप लाइन पर दूसरी सुरंग बनाई गई। इसकी उम्र पुरानी सुरंग से 59 साल कम है और लंबाई 109 मीटर ज्यादा (कुल 441 मीटर) है। नई सुरंग इतनी सीधी है कि आरपार दिखता है।लाइन दोहरीकरण के दौरान 1966 में यहीं अप लाइन पर दूसरी सुरंग बनाई गई। इसकी उम्र पुरानी सुरंग से 59 साल कम है और लंबाई 109 मीटर ज्यादा (कुल 441 मीटर) है। नई सुरंग इतनी सीधी है कि आरपार दिखता है। इससे सुरंग की स्थिति दूसरे सुरंग से काफी बेहतर है और इस और भी बेहतर बनाए जाने के लिए रेल प्रशासन के द्वारा बकायदा प्रपोजल तैयार कर लिया गया है लेकिन इस ऐतिहासिक और 100 साल से ज्यादा पुराने सुरंग के लिए इतनी लापरवाही समझ से परे है वह हाल इस ऐतिहासिक सुरंग में कोई बड़ा हादसा ना हो इसके लिए एहतियातन कदम उठाए जा रहे हैं और वह सिर्फ इतनी है कि यहां से गुजरने वाली ट्रेनों की स्पीड को 10 से 15 रखने के लिए कहा गया है।