न्याय के इंतजार में बीत गए 11 साल: किसान समारू की 10.66 एकड़ जमीन न लौटी, न मिला मुआवजा

रायपुर। राजधानी रायपुर से लगे आरंग ब्लॉक के रमचंडी गांव में एक 83 साल पुराना विवाद आज भी सरकारी तंत्र की लापरवाही की कहानी कह रहा है। 80 वर्षीय किसान समारू पिछले 11 साल से अपने पूर्वजों की जमीन वापस पाने के लिए राजस्व न्यायालयों के चक्कर काट रहे हैं। समारू बताते हैं कि 1929-30 के भू-अभिलेख में खसरा नंबर 200 की 31 एकड़ जमीन उनके नाना कविदास के नाम पर दर्ज है और परिवार पीढ़ियों से उसी पर काबिज रहा है।
1942-43 में माना एयरपोर्ट निर्माण के दौरान इसी जमीन से 10.66 एकड़ भूमि अधिग्रहित कर ली गई, लेकिन इसका न तो कोई रिकॉर्ड मिला और न ही किसानों को एक रुपए का मुआवजा दिया गया। पीड़ित जब जानकारी लेने पहुंचे तो एयरपोर्ट प्रबंधन ने लिखित में जवाब दिया कि जमीन एयरपोर्ट की है ही नहीं। अधिग्रहण का कोई आदेश, भुगतान विवरण या फाइल आज तक किसी विभाग के पास उपलब्ध नहीं है। हैरानी की बात यह है कि यह जमीन आज भी खाली पड़ी है और कभी किसी सरकारी उपयोग में नहीं लाई गई।
समारू ने 2014 में राजस्व मंडल से गुहार लगाई। जांच में राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार और एसडीएम ने 2021 में स्पष्ट कर दिया कि अधिग्रहण हुआ ही नहीं और न ही मुआवजा दिया गया, फिर भी 2022 में उनकी अपील खारिज कर दी गई। अब मामला संभाग आयुक्त से लौटकर फिर कलेक्टर के पास है और किसान रोज कलेक्टोरेट का चक्कर काट रहे हैं।
समारू की बेटी कैंसर से जूझ रही है, इलाज में लाखों खर्च हो चुके हैं। उनका दर्द है—“सरकार या तो जमीन वापस कर दे या मुआवजा दे दे, ताकि बेटी का इलाज हो सके।” इधर, इसी तरह 78 वर्षीय ज्योति आहूजा भी 13 साल से अपनी अधिग्रहित जमीन वापस पाने के लिए भटक रही हैं। कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह का कहना है कि मामले की जांच चल रही है और जल्द निराकरण किया जाएगा।





