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संघ प्रमुख के 10 बड़े बयान: जनसंख्या, जातिगत आरक्षण, भाषा और राजनीति पर दिया बड़ा संदेश

दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूर्ण होने पर विज्ञान भवन में 26 से 28 अगस्त तक तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। अंतिम दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राजनीति, समाज और संस्कृति से जुड़े कई अहम मुद्दों पर विचार रखे।

भागवत ने साफ कहा कि संघ और बीजेपी दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं, फैसले क्षेत्रानुसार तय होते हैं। उन्होंने शिक्षा में आधुनिक तकनीक की उपयोगिता मानी, लेकिन साथ ही मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा पर जोर दिया। नई शिक्षा नीति को समयानुकूल बताया।

  • उन्होंने जन्मदर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि परिवार में कम से कम तीन संतानें होनी चाहिए। वहीं, हाल ही में संसद में पारित PM-CM को जेल में रहने पर पदमुक्त करने वाले बिल पर उन्होंने कहा कि नेतृत्व स्वच्छ और पारदर्शी होना चाहिए।
  • 75 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट पर भागवत ने स्पष्ट किया कि यह उनकी निजी राय नहीं थी, बल्कि पूर्वजों के विचारों का हवाला था। उनका कहना था कि सेवा भावना में कोई आयु सीमा नहीं है।
  • धर्म और संस्कृति पर उन्होंने कहा कि हिंदू और मुस्लिम की जड़ें एक हैं। पूजा पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन संस्कृति और पूर्वज समान हैं। इस्लाम भारत का हिस्सा है और रहेगा। घुसपैठ रोकने की जरूरत पर उन्होंने बल दिया।

भाषा विवाद पर भागवत ने कहा कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं हैं। संपर्क के लिए एक भारतीय भाषा होनी चाहिए, विदेशी नहीं। उन्होंने बच्चों को भारतीय साहित्य से जुड़ने की सलाह दी।

  • आरक्षण पर संघ प्रमुख ने कहा कि संविधान सम्मत जातिगत आरक्षण का संघ समर्थन करता है। यह सामाजिक संतुलन के लिए आवश्यक है।
  • काशी और मथुरा विवाद पर उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ अब किसी आंदोलन में सीधे शामिल नहीं होगा।
  • भागवत ने जोर दिया कि महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है, और संघ कभी हिंसा का समर्थन नहीं करता।

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