विशेष

Change in weather: 20 सालों में धरती का तापमान इतना बढ़ेगी कि लोगों का जीना हो जाएगा दुर्भर, इस रिपोर्ट से खुलासा….पढ़िए

नई दिल्ली।  (Change in weather) पृथ्वी का ताप धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. ग्लोबल वार्मिग की वजह से तापमान में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई है. इसका असर आप मौसम में हो रहे परिवर्तन से लगा सकते हैं. कई देशों में 2021 में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. तपाने वाली गर्मी के पीछे कार्बन डॉय ऑक्साइड का उत्सर्जन एक प्रमुख कारण हैं. जैसे-जैसे दुनिया में विकास बढ़ते जा रहा है. वैसे ही प्रदूषण बढ़ रहा है. इसका खासा असर जलवायु पर पड़ रहा है.

(Change in weather) इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की एक नई रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 20 साल में धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. इसके पीछे का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन होगा. इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 195 देशों से मौसम और प्रचंड गर्मी से संबंधित आकंड़ों का विश्लेषण जुटाया गया. इस रिपोर्ट में प्रचंड गर्मी को लेकर जिक्र हैं. जिसमें उल्लेखित है कि 50 सालों में गर्मी प्रचंड रूप में आती है, लेकिन अब 10 सालों में धरती के गर्म होने की शुरूआत हो चुकी है.

Raipur: शातिर चोरों का खेल खत्म, राजधानी के अलावा प्रदेश के कई जिलों में बाइक चोरी को दे चुके हैं अंजाम, अब चढ़े पुलिस के हत्थे, 14 मोटरसाइकिल बरामद

IPCC की इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने(Change in weather) कहा है कि पिछले 40 सालों से गर्मी जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी गर्मी 1850 के बाद के चार दशकों में नहीं बढ़ी थी. साथ ही वैज्ञानिकों ने चेतावनी भी दी है कि अगर हमनें प्रदूषण पर विराम नहीं लगाया तो प्रचंड गर्मी, बढ़ते तापमान और अनियंत्रित मौसमों से सामाना करना पड़ेगा. इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक फ्रेडरिके ओट्टो ने कहा कि जलवायु परिवर्तन भविष्य की समस्या नहीं, बल्कि अभी की दिक्कत है. यह पूरी दुनिया के हर कोने पर असर डाल रही है. भविष्य में तो और भी भयानक स्थिति बन जाएगी अगर ऐसा ही पर्यावरण रहा तो.

अगर प्रदूषण का स्तर इसी तरह से बढ़ता रहा, जलवायु परिवर्तन को रोका नहीं गया तो साल 2100 तक औसत तापमान में 4.4 डिग्री सेल्सिय की बढ़ोतरी हो जाएगी. अगर इतना तापमान बढ़ेगा तो आर्कटिक, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर और बर्फीली चट्टानें बहुत तेजी से पिघलेंगी. साल 2015 के पेरिस समझौते के तहत पांच बड़ी मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं, अगर तापमान वृद्धि को नहीं रोका गया. अगले 20 सालों में तापमान में औसत वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की होगी. इससे पेरिस समझौते के लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो पाएगी. यानी पूरी दुनिया तापमान रोकने में असफल हो जाएगी.

IPCC की रिपोर्ट की माने तो अच्छी खबर ये हो सकती है कि अगर प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण किया जाए. कार्बन उत्सर्जन जीरो कर दिया जाए तो वायुमंडल में प्रदूषण की मात्रा कम होगी. साथ ही साल 2100 तक तापमान सिर्फ 1.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ पाएगा. यूके स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग्स के पर्यावरणविद एड हॉकिंस कहते हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस या 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को कम करना कोई बड़ी बात नहीं है. हर तरह की गर्मी मायने रखती है. अगर लगातार गर्मी बढ़ती रही तो कार्बन डाईऑक्साइड का साम्राज्य पूरी दुनिया में कायम होगा. सांस लेना दूभर हो जाएगा.  

Kanker: धूमधाम से मनाया गया विश्व आदिवासी दिवस, ढोल नगाड़े के साथ पूरे नगर में निकली यात्रा

एड हॉकिंस ने बताया कि कार्बन उत्सर्जन बढ़ने का नुकसान ये होगा कि पूरी दुनिया को प्रचंड गर्मी, भयावह बाढ़ जैसा कि अभी जर्मनी और चीन में आया, ज्यादा बर्फ पिघलने का खतरा और पर्माफ्रॉस्ट में कमी देखने को मिलेगी. अगर इसी गति से गर्मी बढ़ती रही तो धरती का उत्तरी ध्रुव यानी आर्कटिक अपना पूरी बर्फ साल 2050 तक खो देगा. इसके खत्म होते ही पोलर बियर्स (Polar Bears) की प्रजाति को खतरा हो जाएगा. साथ ही सूरज की रोशनी का रिफलेक्शन कम होगा. उत्तरी ध्रुव पर गर्मी बढ़ने से अन्य तरह की मौसमी दिक्कतें बढ़ जाएंगी.

फ्रेडरिको ओट्टो ने कहा कि लगातार तापमान बढ़ने से कैलिफोर्निया, ऑस्ट्रेलिया और तुर्की के जंगलों में लगी आग की घटनाओं में कमी नहीं आएगी. ऐसा आग को संभालना मुश्किल हो जाएगा. अगर बर्फ खत्म हो जाए और जंगल जल कर खाक हो जाएं तो आपके सामने पानी और हवा दोनों की दिक्कत हो जाएगी. कितने दिन आप इस स्थिति में जीने की उम्मीद कर सकते हैं. ध्रुवों की बर्फ पिघलेगी तो समुद्री जलस्तर बढ़ेगा. कई देश तो यूं ही डूब जाएंगे जो समुद्र के जलस्तर से कुछ ही इंच ऊपर हैं. जंगलों में लगी आग से निकले धुएं की वजह से उस देश में और आसपास के देशों में लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाएगा.

किंग्स कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक और इस रिपोर्ट के दूसरे लेखक तमसिन एडवर्ड ने कहा कि समुद्रों में एसिड की मात्रा बढ़ने लगेगी. इसे सुधारना इंसानों के हाथ में है ही नहीं. ये सदियों में साफ होता है. लेकिन इंसानों के हाथ में एक चीज है कि वो प्रदूषण कम करें और जलवायु परिवर्तन को रोकें. हमें लंबे समय के लिए योजनाओं पर काम करना होगा. इंपीरियल कॉलेज लंदन के साइंटिस्ट जोएरी रोगेल ने कहा कि अगले कुछ दशकों में अगर उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई गई तो धरती पर जीना मुश्किल होने वाला है.

जोएरी रोगेल ने कहा कि हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. यह उत्सर्जन धरती पर मौजूद इंसानों की वजह से हो रहा है. अगर इसे हमने 2050 तक घटाकर 500 करोड़ टन तक नहीं किया तो यह हमारे लिए घातक साबित हो जाएगा. लेकिन वर्तमान गति से चलते रहे तो साल 2050 तक प्रदूषण, प्रचंड गर्मी, बाढ़ जैसी दिक्कतों का आना दोगुना ज्यादा हो जाएगा. इसे रोकना जरूरी है, नहीं तो अगली पीढ़ियों को एक बर्बाद धरती मिलेगी.

IPCC की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि पहले 50 सालों कैलिफोर्निया और कनाडा जैसी प्रचंड गर्मी की घटनाएं होती थी. लेकिन अब तो हर दस साल में ऐसी एक घटना देखने को मिल रही है. चाहे वह कैलिफोर्निया के जंगलों में आग लगना हो, या ऑस्ट्रेलिया में. तुर्की के जंगलों का जल जाना हो या कनाडा के एक पूरे गांव का गर्मी की वजह से भष्म हो जाना. 1900 की तुलना के बाद से बाढ़ 1.3 गुना ज्यादा खतरनाक हो चुके हैं. 6.7 गुना ज्यादा पानी का बहाव होता है. यानी ज्यादा बाढ़.

Related Articles

Back to top button