योगेंद्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किए ‘मृत’ मतदाता, वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया पर सवाल

दिल्ली। मतदाता सूची संशोधन (SIR) के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव सुधार कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने दो ऐसे व्यक्ति पेश किए जिन्हें वोटर लिस्ट में मृत दिखाया गया था। उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि SIR प्रक्रिया में फॉर्म भरने और नागरिकता के अनुमान जैसी नई शर्तें जोड़ी गईं, जो अवैध हैं।

जस्टिस सूर्यकांत ने यादव की प्रस्तुति की सराहना की। यादव ने कहा कि 2003 में मतदाता सूची का कंप्यूटरीकरण हुआ था, लेकिन तब किसी से फॉर्म या दस्तावेज नहीं मांगा गया था। SIR की वर्तमान प्रक्रिया पूर्णता, सटीकता और निष्पक्षता—तीनों कसौटियों पर विफल है। उन्होंने बताया कि बिहार में वयस्क जनसंख्या 8.18 करोड़ है, जबकि मतदाता सूची में सिर्फ 7.9 करोड़ नाम थे, यानी शुरुआत में ही 29 लाख की कमी।

यादव के अनुसार, संशोधन प्रक्रिया का उद्देश्य नए नाम जोड़ना नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर विलोपन करना रहा। उन्होंने आरोप लगाया कि 65 लाख नाम हटाए गए, जिनमें 31 लाख महिलाएं शामिल हैं। यह महिला विरोधी पूर्वाग्रह को दर्शाता है क्योंकि महिलाएं आमतौर पर प्रवास नहीं करतीं और उनकी मृत्यु दर भी अधिक नहीं होती।

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि “अनुशंसित नहीं” श्रेणी के पीछे क्या आधार है, और क्यों चुनाव आयोग यह डेटा अदालत से साझा नहीं कर रहा। यादव ने चेतावनी दी कि यह प्रक्रिया मताधिकार से वंचित करने की ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ी कवायद बन सकती है, जिसमें प्रभावित लोगों की संख्या 1 करोड़ से अधिक हो सकती है। यादव ने कहा, यदि चुनाव आयोग अंतिम सूची जारी करने से पहले किसी का नाम हटा देता है, तो अपील का मौका लगभग खत्म हो जाएगा, जिससे कई लोग मतदान के अधिकार से वंचित रह जाएंगे।

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