रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार, कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल को शुक्रवार को रायपुर स्थित उनके आवास पर हिंदी साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
ज्ञानपीठ के महाप्रबंधक आर.एन. तिवारी ने वाग्देवी की प्रतिमा और पुरस्कार का चेक सौंपकर उनका सम्मान किया। इस तरह वे छत्तीसगढ़ से ज्ञानपीठ प्राप्त करने वाले पहले साहित्यकार बन गए।
सम्मान ग्रहण करते हुए विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि जब दुनिया में भाषाओं के संकट की चर्चा हो रही है, तब उन्हें भरोसा है कि नई पीढ़ी हर भाषा और हर विचारधारा का सम्मान करेगी। उन्होंने कहा, “किसी भाषा या अच्छे विचार का नष्ट होना, मनुष्यता का नष्ट होना है।”
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रायपुर दौरे के दौरान उनसे मुलाकात कर हालचाल पूछा था। तब विनोद कुमार शुक्ल ने कहा था, “लिखना मेरे लिए सांस लेने जैसा है। मैं जल्द से जल्द घर लौटकर लिखना जारी रखना चाहता हूं।”
सम्मान समारोह के दौरान उन्होंने पाठकों के प्रति आभार जताया और अपनी कविता का पाठ भी किया। बच्चों और किशोरों के लिए लंबे समय से लेखन कर रहे शुक्ल ने कहा कि अच्छी किताबें हमेशा साथ रखनी चाहिए, क्योंकि किसी भी क्षेत्र में शास्त्रीयता को पाना है तो उसके श्रेष्ठ साहित्य के पास जाना जरूरी है।
आलोचना पर उन्होंने कहा, “अगर किसी अच्छे काम की आलोचना होती है, तो वही आलोचना आपकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। कविता की सबसे अच्छी आलोचना है क और अच्छी कविता लिख देना।”
उन्होंने जीवन के अनुभव साझा करते हुए कहा कि असफलताएं और आलोचनाएं हर जगह मिलेंगी, लेकिन बिखराव के बीच भी अच्छाई मौजूद रहती है। अंत में उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘सबके साथ’ का पाठ किया और कहा, “उम्मीद ही जीवन की सबसे बड़ी ताकत है। मेरे लिए लिखना और पढ़ना सांस लेने जैसा है।”
