धमतरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के सिहावा में दशहरा का पर्व परंपरागत रूप से अनोखे तरीके से मनाया जाता है। यहां रावण वध नहीं होता, बल्कि सहस्त्रबाहु का वध किया जाता है। सहस्त्रबाहु का पुतला मिट्टी का बनाया जाता है और महिलाओं का इसे देखने पर वर्जन है। सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा को देखने हर साल हजारों लोग सिहावा आते हैं। खास बात यह है कि यहां सहस्त्रबाहु का वध दशमी के बजाय एकादशी को किया जाता है। इस दौरान पुलिस चांदमारी कर सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
धमतरी जिला मुख्यालय से सिहावा लगभग 70 किमी दूर स्थित है। ओडिशा की सीमा के पास बसा यह क्षेत्र श्रृंगी ऋषि और सप्त ऋषियों के आश्रम, जंगल और महानदी के उद्गम स्थल के लिए भी जाना जाता है। सिहावा के शीतला मंदिर में पुजारी माता के खड्ग से सहस्त्रबाहु का वध करते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान राम ने लंकापति रावण का वध कर सीता माता से मिले, तब सीता ने बताया कि युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और सहस्त्रबाहु का भी वध करना है। भगवान राम ने सहस्त्रबाहु पर आक्रमण किया, लेकिन ब्रह्मा के वरदान के कारण उसे मार नहीं सके। सहस्त्रबाहु ने मर्यादा तोड़ते हुए सीता माता के सामने अपने वस्त्र खोल दिए, तब सीता माता ने कालिका का रूप धारण कर खड्ग से उसका वध किया। इसी कथा के आधार पर सिहावा में नग्न सहस्त्रबाहु का पुतला बनाया जाता है।
उत्सव के दिन पुजारी खड्ग लेकर पूरे गांव का भ्रमण करते हैं और बड़ी संख्या में ग्रामीण उनके साथ चलते हैं। इसके बाद सभी सिहावा थाना पहुंचते हैं, जहां पुलिस बंदूक से चांदमारी करती है। उसके बाद पुजारी नग्न सहस्त्रबाहु का वध करने आगे बढ़ते हैं। इस अनोखे पर्व में दूर-दूर से लोग शामिल होकर सिहावा की परंपरा का अनुभव करते हैं।