Bemetara : राजपुरी के जंगल में दिखा दुर्लभ प्रजाति का गिरगिट

बेमेतरा @ दुर्गा प्रसाद सेन। छत्तीसगढ़ राज्य के अधिकांश घनघोर जंगल अपने आप में कई रहस्यों को समाए हुए हैं। यहां पाए जाने वाले साल सागोन महुवा वनों के द्वीप में कई ऐसी जैव प्रजातियां मौजूद हैं जो अपने आप में काफी अनूठी हैं। यहां के जंगलों में अक्सर दुर्लभ प्रजातियों के ऐसे जीव देखने मिलते हैं, जो आम तौर पर कहीं दिखाई नहीं देते।

बेमेतरा (Bemetara ) जिले के नगर पंचायत नवागढ़ के युवा किसान किशोर कुमार राजपूत को जशपुर जिले के नगर पंचायत बगीचा में स्थित राम वन गमन पथ जंगल में भी एक ऐसा ही अनोखा जीव देखने को मिला हैं। जो गिरगिट की एक दुर्लभ प्रजाति का बेहद आकर्षक जीव है। यह आकार में सामान्य गिरगिट से काफी बड़ा है और इसके शरीर का रंग धारीदार हरा है। सड़क पर चल रहे इस जीव को वन विभाग बागीचा के अधिकारियों को दिखाकर शोभनाथ एक्का ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी लुण्ड्रा की उपस्थिति में जंगल में सुरक्षित छोड़ा गया है।

हरे रंग की वजह से दुश्मन को बचाते हैं – हरे रंग की वजह से यह गिरगिट पेड़ों और पत्तियों के बीच आसानी से छिप जाता है और फिर घात लगाकर अपने भोजन के लिए छोटे कीड़े मकोड़ों का शिकार करता है। अपने इस खास शारीरिक रंग के चलते यह दूसरे बड़े शिकारी जानवरों से अपना बचाव भी आसानी से कर लेता है। रास्ते में चलने के दौरान मालूम हुआ कि वह एक मादा गिरगिट है जो इस समय गर्भवती हैं, और जल्द ही अंडे देने वाली है। इनका मुंह काफी बड़ा होता है ।

इस दुर्लभ गिरगिट की शारीरिक बनावट – छत्तीसगढ़ राज्य के बगीचा में पाए जाने वाले इस गिरगिट की आंखों की बनावट लेंस नुमा दिखती है, जिसकी फोकस क्षमता काफी अच्छी होती है। इसकी कुछ प्रजातियां दक्षिणी यूरोप, दक्षिण एशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी मिलती हैं। इसकी चलने की रफ्तार बहुत कम है। इसकी मुख्य वजह हाथ व पैर की पांचों अंगुलियां जुड़ी हुई हैं। इंडियन कैमेलियन के शरीर पर पीले धब्बे नुमा हरा रंग और बड़ी-बड़ी सर्चलाइट नुमा आंखें होती हैं। इसकी जीभ की लंबाई 4 से 5 इंच तक होती है जो जरूरत पड़ने पर और बड़ी हो सकती है। यह मुख गुहा में स्प्रिंग की तरह गोल बनाकर रखी जाती है। अग्रभाग कूपनुमा होने के साथ जीभ पर लिलिसा पदार्थ लगा रहता है, जो कीट-पंतंगे पकड़ने के लिए मददगार रहता है।

चुटकी में रंग बदलने की क्षमता रखने वाले इंडियन कैमेलियन की पूंछ भी उतनी ही लंबी होती है, जो स्प्रिंग की तरह गोल रहती है। इसकी मदद से यह टहनियां पकड़कर लटकते हुए चलता-फिरता है। इस लिहाज से इसके शरीर व पूंछ की लंबाई कभी-कभी 14 से 16 इंच तक पहुंच जाती है। इसके मुंह में न तो विष ग्रंथियां होती हैं और न ही इसमें अंश मात्र जहर होता है। भारत में यह विलुप्ति की कगार पर है।

इस गिरगिट के ये सब दुश्मन : जीव विज्ञान के जानकारों की राय में गिरगिट रात के समय पेड़ों पर ही रहते हैं। सूर्योदय के साथ सुबह करीब 10 बजे तक गिरगिट खाने की तलाश करता है। इसके बाद शाम 4 बजे तक गिरगिट सुस्ताता है। भूखा होने की स्थिति में आराम समय में कुछ परिवर्तन संभव है। शाम 4 बजे से गिरगिट फिर एक बार भोजन की तलाश शुरू करता है। सूर्यास्त के कुछ मिनटों पहले गिरगिट की चाल धीमी हो जाती है। अंधेरा होने पर गिरगिट वृक्ष की ऊंची और नीचे की ओर झुकी हुई पतली शाखा में चपटा होकर सोता है। इसे हर पल उल्लू,बड़े सर्प और गोह से खतरा रहता है वैसे, गिरगिट आलसी और शांतिप्रिय होता है।

18 डिग्री से नीचे तापमान सहन नहीं कर पाता गिरगिट : सर्दी के मौसम में गिरगिट दीवारों, चट्टानों की दरारों में, पेड़ के खोखले हिस्से या घास-फूस में छिपकर समय बिताता है। कारण कि 18 डिग्री से नीचे के तापमान को गिरगिट सहन नहीं कर पाता है। वहीं 10 डिग्री से तापमान के नीचे आते ही यह बिल्कुल निष्क्रिय हो जाता है। कहते हैं 6 डिग्री तापमान में यह बिल्कुल अधमरा सा एक जगह पड़ा रहता है। जैसे-जैसे पारा कम होता है, वैसे वैसे यह वापस से फुर्तिला हो जाता है।

Exit mobile version