शिव शंकर साहनी @अम्बिकापुर। भाजपा पार्षद आलोक दुबे ने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव और उनके परिवार के ऊपर जमीन घोटाला करने का आरोप लगाया था। पार्षद का आरोप था कि सिंहदेव के द्वारा निस्तारित राइट की जमीन खसरा नंबर 3467 के 64 एकड़ भूमि व गर्ल्स स्कूल के नाम पर दान किए गए भूमि खसरा नंबर 2640, 20 डिसमिल जमीन को अपने नाम करा कर 300 करोड रुपए में बेचने का आरोप लगाया था। इस मामले में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बात सामने रखी गई है।
स्टेट बैंक के पास कन्या शाला की 20 डिसमिल जमीन थी, जिसका खसरा कमांक 2640 जिसे बदलकर अपने नाम में कर लिया गया।
जवाब – यह जमीन इन्वेन्ट्री के अनुसार महाराजा की व्यक्तिगत जमीन थी, जिसे उन्होंने सशर्त दान में दी थी और शर्त यह थी कि दान की गई जमीन पर केवल कन्या शाला का ही संचालन हो तथा कन्या शाला का नाम महारानी साहिबा के नाम पर होगा। परन्तु आगे चलकर देखा गया कि शर्तों का उल्लंघन हो रहा है, तत्पश्चात मामला कोर्ट में गया और कोर्ट ने पाया की शर्तों का उल्लंघन हो रहा है. इसलिए कोर्ट द्वारा जमीन को वापस लौटा दिया गया।
2. आरोप – नजूल खसरा क्रमांक 3467 जिसमें 52 एकड़ का तालाब था. जिसमें से 31 एकड़ को बेच दिया गया।
जबाव : यही व्यक्ति नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में केस दर्ज किया था जिसमें कलेक्टर भी पार्टी थे जिसे ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि कलेक्टर द्वारा पूर्ण जाँच उपरात निष्कर्ष दिया गया कि तालाब की अधिकतम सीमा 21 एकड़ ही है। 31 एकड़ सुखी जमीन है। इसलिए इस जमीन को डायवर्सन की अनुमति दी गई। बताना चाहेगे कि, जब यह केस दायर भी नहीं हुआ था।
तब के तत्कालिन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के शासन काल में जमीन की खरीदी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, परन्तु जांच पर पाया गया कि सारे आरोप तथ्यहिन है एवं NGT ने कलेक्टर के जांच को सही बताकर भी केस को खारिज कर दिया तथा रिव्यू पिटिशन भी खारिज कर दिया गया। राज परिवार के द्वारा 1995 में डायवर्शन हेतु आवेदन कलेक्टर कार्यालय को प्रेषित किया गया था जिसमें जल क्षेत्र को छोड़कर शेष भूमि का डायवर्शन करने का अनुरोध किया गया था। कलेक्टर बुजा के द्वारा राज्य शासन से मार्गदर्शन प्राप्त कर दिनांक 05/11/1995 को आदेश कर 21 एकड़ जल क्षेत्र को छोड़कर शेष सुखी जमीन 31.82 एकड़ को डायवर्शन आवासीय एवं व्यवसायिक प्रायोजन के लिए कर दिया गया।
बीजेपी पार्षद द्वारा NGT भोपाल में शिकायत की गई। जिसमें दिनांक 07/03/2019 को आदेश पारित कर 31.82 एकड़ रकबा को आवास हेतू भवन निर्माण करने हेतु सही माना गया पार्षद द्वारा ये कहा जाना कि विलम्ब के कारण केस खारिज हुआ है जबकी NGT के द्वारा विलम्ब और कलेक्टर के रिपोर्ट को सही मानते हुए केस को खारिज किया जाये।
3. आरोप : 125 एकड़ जमीन जो शासकीय विभागों के नाम पर दर्ज थी, जो कि 1946 के लैंड सेटेलमेंट रिकार्ड में था, उसे बेच दिया गया।
जबाव :- सरगुजा उन कुछ रियासतों में से था जिसका स्वयं का लँड खेन्यू कोर्ड (वाजिबुल अर्ज) था, इसलिए सारी जमीनें महाराजा के स्वयं के नाम न होकर सरगुजा रियासत के विभागों के नाम पर थे। जब रियासतों का विलय हुआ और संधि के तहत इन्वेंट्री में दर्ज संपत्ति महाराजा की हैं। मर्जर इन्वेन्ट्री एग्रीमेंट भारत सरकार एवं महाराजाओं के रियासतों के मध्य की संधि है, इन्वेन्ट्री में लिखी हुई जमीन को लेकर मर्जर दस्तावेज को अंतिम दस्तावेज माना जाता है। 125 एकड़ की शिकायत बीजेपी पार्षद के द्वारा कि गई है। जबकि इन्वेन्ट्री में दर्ज 362 एकड़ की जानकारी हम दे रहे हैं। जिसमें से 1955 से 1962 के मध्य तात्कालिन महाराजा के द्वारा कई जमीनों की बिक्री कर दी गई है। बिकी हुई जमीन की शिकायत शिकायतकर्ता के द्वारा कलेक्टर सरगुजा, राजस्व मण्डल, हाईकोर्ट बिलासपुर में कि गई और सभी जगह केस खारिज हुआ।
एक पार्षद के आरोप पर कलेक्टर के द्वारा जाँच की बात किया जा रहा है कि, हम जाँच कर रिपोर्ट शासन को भेजेंगे, जबकि ग्रीन ट्रिब्यूनल में कलेक्टर स्वयं ही पार्टी थे। पूर्व कलेक्टर के द्वारा जाँच करके रिपोर्ट दिया गया था कि. 52 एकड़ में 21 एकड़ जमीन जल क्षेत्र है शेष 31 एकड़ जमीन सूखा है, जिसे आज भी मौके पर देखा जा सकता है। परन्तु आश्चर्य का विषय हैं कि बीजेपी पार्षद के द्वारा 29/01/2022 को आवेदन दिया जाता है और उसी दिन सारे दस्तावेज उपलब्ध करा दिया जाता है। साथ ही आश्चर्य का विषय हैं कि बीजेपी की सरकार में उक्त मामले की जांच हो चुकी हैं वर्तमान में भी शिकायतों को अपने दल के पदधिकारियों को पत्र न भेजकर राहुल गांधी को भेज रहे हैं। और न्यायालय का रास्ता न अपनाकर सस्ते लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस तरीके का दुष्प्रचार कर रहे हैं।