रायपुर। राजधानी रायपुर में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण की जांच उसी अनुपात में घटती जा रही है। शहर में 20 लाख से अधिक वाहन पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से 30% से ज्यादा गाड़ियों के पास प्रदूषण जांच प्रमाणपत्र (PUC) नहीं है। नियमों के अनुसार हर वाहन को साल में एक बार पीयूसी जांच करवाना अनिवार्य है, पर इसकी जांच न तो ट्रैफिक पुलिस कर रही है और न ही आरटीओ विभाग। नतीजतन लोग भी लापरवाह होते जा रहे हैं।
शहर में उड़ती धूल और वाहनों से निकलता धुआं लगातार हवा की गुणवत्ता को खराब कर रहा है। बावजूद इसके, पीयूसी सर्टिफिकेट बनवाने की प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। जानकारी के अनुसार, पिछले दो सालों में सिर्फ 2.5 लाख वाहनों ने ही पीयूसी कार्ड बनवाया है, जिनमें भी अधिकतर मालवाहक वाहन हैं। इन वाहनों के चालक इसलिए जांच करवाते हैं क्योंकि राज्य की सीमाओं पर इसकी जांच होती है और जुर्माना लगने का डर रहता है।
वहीं 15 साल से पुराने वाहनों की संख्या करीब तीन लाख है, जिनमें से अधिकतर बिना सर्टिफिकेट के चल रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इन वाहनों को परमिट भी जारी किया जा रहा है। राजधानी में स्थायी पीयूसी जांच केंद्र नहीं हैं; अधिकतर जगह मोबाइल वैन के जरिए जांच की जा रही है। पेट्रोल पंपों पर पीयूसी सेंटर खोलने के आदेश तो हैं, परंतु अधिकांश पंपों ने अब तक यह सुविधा शुरू नहीं की है।
मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार, पीयूसी सर्टिफिकेट न होने पर 1,000 से 10,000 रुपए तक का जुर्माना और लाइसेंस निलंबन का प्रावधान है। फिर भी शहर में इसकी जांच सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, पुराने और डीजल चालित वाहन ग्रीन हाउस गैस और खतरनाक प्रदूषक तत्वों का सबसे बड़ा स्रोत हैं।
