रायपुर। छत्तीसगढ़ के गठन के 25 साल बाद बस्तर अब नक्सल दहशत से धीरे-धीरे आजाद हो रहा है। राज्य में नक्सलवाद का असर तेजी से घटा है और अब तक बस्तर क्षेत्र के 500 से अधिक गांव नक्सलमुक्त घोषित किए जा चुके हैं। इन गांवों में पिछले कई वर्षों से कोई नक्सली वारदात नहीं हुई है।
पुवर्ती, सिलगेर, जगरगुंडा और गोलापल्ली जैसे इलाकों में, जहां कभी दिन में पहुंचना भी जोखिम भरा था, अब लोग रात में भी निडर होकर सफर कर रहे हैं। बस्तर के माड़, दरभा और उत्तर बस्तर डिवीजन — जो कभी नक्सल गतिविधियों का गढ़ माने जाते थे — अब पूरी तरह समाप्ति की ओर हैं। दंतेवाड़ा और सुकमा में भी नक्सली घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है, जबकि बीजापुर के कुछ हिस्सों में उनका आंशिक असर शेष है।
बस्तर में नक्सलियों की सबसे खतरनाक “मिलिट्री बटालियन” का नेतृत्व कुख्यात माड़वी हिड़मा कर रहा था। इसी बटालियन ने झीरम घाटी और ताड़मेटला जैसे बड़े हमलों को अंजाम दिया था, जिनमें 500 से अधिक जवानों ने अपनी जान गंवाई। यह बटालियन कभी नक्सलियों की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती थी, लेकिन अब यह टूटने की कगार पर है।
सुरक्षा बलों के लगातार ऑपरेशनों और रणनीतिक दबाव के चलते बटालियन के कई सदस्य मारे जा चुके हैं, जबकि कई ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया है। शेष सदस्य अब बस्तर छोड़कर दूसरे राज्यों की ओर भाग रहे हैं।
बस्तर की ये नई तस्वीर न सिर्फ राज्य की सुरक्षा एजेंसियों के सफल प्रयासों का परिणाम है, बल्कि स्थानीय जनता की हिम्मत और शांति की इच्छा का भी प्रतीक बन चुकी है।
