बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र बनवाकर सरकारी नौकरी पाने के मामलों में कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सभी संदिग्ध कर्मचारियों का 20 अगस्त तक अनिवार्य रूप से मेडिकल परीक्षण कराया जाए। साथ ही, कोर्ट ने संबंधित विभागीय अधिकारियों को भी लपेटे में लेते हुए निर्देश दिया है कि वे सुनिश्चित करें कि उनके अधीनस्थ कर्मचारी इस आदेश का पालन करें।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि कोई कर्मचारी जांच से बचने की कोशिश करता है, तो उसकी निगरानी में कार्यरत अधिकारी की भूमिका की स्वतंत्र जांच कराई जाएगी। यह आदेश उन विभागीय लापरवाहियों पर सीधा सवाल खड़ा करता है, जिनकी वजह से वर्षों से योग्य दिव्यांगों को उनका अधिकार नहीं मिल पाया।
वर्षों पुरानी मांग को मिला न्यायिक बल
छत्तीसगढ़ दिव्यांग संघ लंबे समय से यह मुद्दा उठा रहा था कि कई शारीरिक रूप से सक्षम व्यक्तियों ने फर्जी प्रमाणपत्र के जरिए दिव्यांग आरक्षण का अनुचित लाभ उठाया है। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से अब इस मांग को मजबूती मिली है।
नियमों की अनदेखी पर लगेगी लगाम
कोर्ट के आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दिव्यांग कोटे में नौकरी करने वालों को अब अपनी शारीरिक अक्षमता का वास्तविक प्रमाण देना होगा। यह फैसला प्रशासनिक पारदर्शिता और दिव्यांग जनों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में अहम माना जा रहा है। अब सभी की नजरें 20 अगस्त पर टिकी हैं, जब सामने आएगा कि कितने कर्मचारी इस परीक्षण में खरे उतरते हैं और कितनों की सच्चाई सामने आती है।