बैंकिंग से खेती तक का सफर: जल संकट में फसल विविधीकरण की नई मिसाल बने विवेक धर दीवान

रायपुर। लगभग दो दशकों तक बैंकिंग सेक्टर में गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के अलग-अलग शहरों में सेवाएं देने के बाद विवेक धर दीवान ने ऐसा फैसला लिया, जो आज जल संरक्षण और टिकाऊ खेती की मिसाल बन गया है। रायपुर में वाइस प्रेसिडेंट जैसे वरिष्ठ पद पर कार्यरत रहते हुए उन्होंने नवंबर 2024 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और अपने पैतृक गांव ताला (विकासखंड बेमेतरा) लौटकर कृषि को जीवन का नया लक्ष्य बनाया।

गांव लौटने पर उन्होंने महसूस किया कि क्षेत्र में खरीफ और रबी—दोनों मौसमों में धान की खेती की जा रही है, जबकि धान अत्यधिक जल मांगने वाली फसल है और रबी के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती। लगातार जल संकट और कम वर्षा की स्थिति को देखते हुए विवेक धर दीवान ने बदलाव की ठानी। उन्होंने न केवल खुद धान छोड़कर वैकल्पिक खेती शुरू की, बल्कि पंचायत के तीनों गांवों को नॉन-धान क्षेत्र (नॉन पेड्डी जोन) घोषित कराने में भी अहम भूमिका निभाई।

इस पहल के तहत रबी मौसम में दलहन और तिलहन फसलों को प्राथमिकता दी गई। गेहूं, चना, रागी, सूरजमुखी और मूंग जैसी कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा मिला। खुद उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने अपनी जमीन पर गेहूं, सरसों, रागी और सूरजमुखी की बुवाई की। खेती में जीरो सीड ड्रिल तकनीक अपनाई गई और फसल अवशेष प्रबंधन का पालन किया गया, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।

विवेक धर दीवान का कहना है कि जब जिले में लंबे समय से जल संकट है, तब कम पानी में तैयार होने वाली रबी फसलें ही भविष्य का रास्ता हैं। उन्होंने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर रहा है। वर्तमान में गेहूं 2500 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक, रागी 7000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक और सरसों 6200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदी जा रही है।

विवेक धर दीवान की यह पहल साबित करती है कि सही सोच, तकनीक और नेतृत्व से खेती को जल-संरक्षण के साथ-साथ लाभकारी भी बनाया जा सकता है। उनकी कहानी आज बेमेतरा जिले के किसानों के लिए प्रेरणा और नई दिशा बन रही है।

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