रायपुर। छत्तीसगढ़ में वन विभाग के अफसर अपने करीबियों की गलती किस तरह से छिपाते थे? इसका उदाहरण रविवार को सामने आया है। वन अफसरों के निर्देश पर जंगल सफारी के दो डॉक्टर पांच चीतल और दो ब्लैक बैग लेकर नागालैंड के धीमापुर जू पहुंचे थे। यहां पर एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत वन्य प्राणी दिए और दो हिमालयन भालू जंगल सफारी के लिए लेकर निकले। धीमापुर जू से आने वाले एक हिमालयन भालू की रास्ते में मौत हो गई? उसके बाद भी ना तो एक्सपर्ट पर कार्रवाई की गई और ना ही इंक्वायरी बिठाई गई। विभागीय अफसरों की इस मनमानी से वन्य जीव प्रेमी आक्रोषित है।
रायपुर के नितिन सिंघवी ने पूछा कि खुलासा करा जाए कि वे कौन डॉक्टर थे जो भालू लेकर आ रहे थे? भालू कैसे मरा, कहां मरा, कब मरा? अगर मरा तो पोस्टमार्टम कहां किया गया? पोस्टमार्टम गोपनीय तरीके से क्यों किया गया? पोस्टमार्टम में सिविल ससोसाइटी का प्रतिनिधि कौन था? दोनों डॉक्टर में से एक डॉक्टर को किसका संरक्षण मिला है कि जिसे सदन में हटाने का आदेश होने के बावजूद भी हटाया नहीं गया है। सिंघवी ने यह भी पूछा कि पिछले दिनों जंगल सफारी में कितने साही की मौतें हुई है? सिंघवी ने मांग की कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को यह आंकड़े भी जारी करने चाहिए कि उनके कार्यकाल में कितने वन्यजीवों की मौतें जंगलों में हुई और कितनों की जू में मौतें हुई और क्या वे नैतिक जिम्मेदारी लेकर छुट्टी पर चले जायेंगे?
वन्य जीवों की मौत के बाद भी विभाग नहीं ले रहा सबक
सिंघवी ने आरोप लगाया कि लापरवाही से वन्य जीवों की हो रही मौतों से वन विभाग कभी सबक नहीं लेगा। अभी हाल ही में बारनवापारा अभ्यारण से डॉक्टर की अदूरदर्शित और नादानी के चलते एक सब-एडल्ट मादा बाईसन को पड़कर अकेले गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व भेजा गया, जहां पहुचने पर उसकी मौत हो गई, उससे भी कोई सबक नहीं लिया। सिंघवी ने मांग की कि जंगल सफारी और कानन पेंडारी से सफ़ेद भालू सहित सभी वन्य प्राणियों के एक्सचेंज प्रोग्राम पर पूर्णत: रोक लगाई जावे और दोनों डॉक्टर को हटाया जाये।