खल्लारी माता के दर्शन को उमड़ता है जनसैलाब, 850 सीढ़ियों वाला माता का अनोखा मंदिर, जुड़ी है अनोखी मान्यता

महासमुंद। नवरात्र की शुभारंभ हो गई है और राजमाता खल्लारी के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। राजमाता खल्लारी का अपना एक अलग विशेष महत्व है. माना जाता है कि यहां दर्शन करने से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. देखिए इस खास रिपोर्ट में…

राजमाता खल्लारी का खूबसूरत मंदिर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर खल्लारी पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है. प्राचीन काल में इस स्थान को खलवाटिका के नाम से जाना जाता था. बता दें कि माता के दर्शन के लिए भक्तों को करीब 850 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है, लेकिन अब लोगों के सुविधा के लिए रोप- वे लगाया जा चुका है.

अब रोप वे माध्यम से लोग माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. यहां श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए दूर-दूर से माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं वह संतान प्राप्ति की मनोकामना के लिए ना सिर्फ माता के दर्शन करती हैं बल्कि यहां पर मनोकामना ज्योति प्रज्वलित कर जाते हैं. खल्लारी माता मंदिर में हर साल शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. नवरात्रि के दिनों में मंदिर में माता के दर्शन के लिए आसपास के भक्तों के साथ ही दूसरे राज्यों से भी लगभग 30 से 35 हजार श्रद्धालु हर रोज पहुंचते हैं. चैत पूर्णिमा के दिन खल्लारी में मेला महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग लाखों की संख्या में पहुंचते हैं.

वहीं स्थानीय लोगों की मानें तो मां खल्लारी महासमुंद के बेमचा में निवास करती थी और माता यहां कन्या का रूप धारण करके खल्लारी में लगने वाले हाट बाजार में आती थी. इसी दौरान खल्लारी बाजार में आया एक बंजारा माता के रूप पर मोहित हो गया और उनका पीछा करते हुए पहाड़ी पर पहुंच गया. जिससे माता बुरी तरह से क्रोधित हो गई और उन्होंने बंजारे पर अपने शास्त्र से प्रहार किया जिससे वह बंजारा पत्थर में परिवर्तित हो गया जिसके बाद माता खुद भी वहां विराजमान हो गईं. ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपनी यात्रा के दौरान इस पहाड़ी की चोटी पर आये थे, जिसका प्रमाण भीम के विशाल पदचिन्ह हैं जो इस पहाड़ी पर स्पष्ट दिख रहे हैं।

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