बिहार में SIR प्रक्रिया पर विवाद, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दी सफाई

पटना। बिहार में चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर जारी विवाद के बीच आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है।

विपक्ष द्वारा मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाने के आरोपों के बीच आयोग ने स्पष्ट किया कि किसी भी मतदाता से उसका अधिकार नहीं छीना जाएगा और बिना नोटिस दिए किसी का नाम वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जाएगा।

रिपोर्ट के अनुसार, आयोग ने कहा कि SIR प्रक्रिया के तहत हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं कि सभी पात्र मतदाताओं का नाम अंतिम सूची में शामिल रहे। इस प्रक्रिया में किसी का नाम गलत तरीके से हटाने से बचने के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।

सावधानी बरती जा रही

आयोग का यह बयान उस समय आया है, जब विपक्ष ने 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने का आरोप लगाया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर एफिडेविट में आयोग ने कहा कि नाम जोड़ने और हटाने दोनों में पारदर्शिता और सावधानी बरती जा रही है।

चुनाव आयोग के अनुसार, मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने के लिए पर्याप्त मौके दिए जा रहे हैं। इसके लिए बूथ स्तर से लेकर जिला स्तर तक व्यापक नेटवर्क तैयार किया गया है। 38 जिला निर्वाचन अधिकारी, 243 निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी, 2,976 सहायक अधिकारी, 77,895 बूथ स्तरीय अधिकारी, 2,45,716 स्वयंसेवक और 1,60,813 बूथ स्तरीय एजेंट नियुक्त किए गए हैं।

7.24 करोड़ ने अपने दस्तावेज जमा किए

आयोग ने बताया कि 1 अगस्त को जारी ड्राफ्ट सूची में 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने अपने दस्तावेज जमा किए हैं। जिनके दस्तावेज नहीं मिले, उनके नाम राजनीतिक दलों को भेजे जा रहे हैं। बिहार से बाहर रहने वाले मतदाताओं के लिए 246 अखबार विज्ञापन जारी किए गए हैं। आयोग का दावा है कि प्रक्रिया का उद्देश्य केवल मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन करना है, न कि किसी को वोट देने के अधिकार से वंचित करना।

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