दिल्ली। लगभग पांच वर्ष पहले पूरी दुनिया ने कोरोना महामारी की विभीषिका झेली थी।
यह संकट अब पीछे छूट चुका है, लेकिन डॉक्टरों ने चेताया है कि भारत एक नए और कहीं अधिक खामोश संकट की ओर बढ़ रहा है — वायु प्रदूषण। यूके में कार्यरत भारतीय मूल के श्वसन रोग विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अभी सख्त और ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में सांस और दिल से जुड़ी बीमारियां देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य आपदा बन सकती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में श्वसन रोगों का संकट धीरे-धीरे विकराल रूप ले रहा है। लिवरपूल के कंसल्टेंट रेस्पिरेटरी फिजीशियन और भारत की कोविड-19 सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य डॉ. मनीष गौतम के अनुसार उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों को इसका नुकसान पहले ही हो चुका है।
उन्होंने कहा कि फिलहाल उठाए जा रहे कदम नाकाफी हैं और सांस की बीमारियों की लहर भविष्य में स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी दबाव डाल सकती है। उन्होंने समय रहते पहचान, इलाज और तेजी से काम करने वाले टास्क फोर्स के गठन की आवश्यकता पर जोर दिया।
डॉक्टरों के अनुसार दिसंबर में केवल दिल्ली के अस्पतालों में ही सांस की तकलीफ वाले मरीजों की संख्या 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ी, जिनमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी जिन्हें पहले कभी ऐसी समस्या नहीं हुई थी।
लंदन के सेंट जार्ज यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल से जुड़े मानद हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजय नारायण का कहना है कि वायु प्रदूषण कार्डियोवैस्कुलर रोगों और क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिजीज का बड़ा कारण बन रहा है। सिरदर्द, थकान, हल्की खांसी, आंखों में जलन जैसे लक्षणों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि ये गंभीर बीमारी की शुरुआती चेतावनी हो सकते हैं।
मुंबई में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए बीएमसी ने बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स में चल रहे बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है। बॉम्बे हाईकोर्ट की सख्ती के बाद लिया गया यह कदम बताता है कि समस्या कितनी गंभीर है। विशेषज्ञों का मानना है कि टीबी की तरह श्वसन रोगों के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर बड़े और संगठित स्वास्थ्य अभियान चलाने की अब तत्काल जरूरत है।
