7 जुलाई को श्री जगन्नाथ बात 15 जुलाई श्री जगन्नाथ मंदिर, गायत्रीनगर, रामपुर में भव्य आयोजन, सीएम और राज्यपाल होंगे शामिल

रायपुर। भका और भगवान के शाकाह ऐतिहासिक व पारंपरिक पर्व है. जो सीधे भका को भगवान से जोड़ता है, जो नवलप ओडीशा राज्य की भावनाओं को आपस में जोड़ती है अपितु इन दोनों राज्यों के बीस आपसी भाईचारा एवं प्रेम बन्धुत्व की भावनाओं को आज के इस आधुनिक युग में भी जीवन बनाए हुए है, जी हमारी धार्मिक आस्था एवं साम्प्रदायिक सद्‌भाव का प्रतीक है। इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया अर्थात 07 जुलाई, रविवार को रथयात्रा पर्व अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा।

उक्ताशय की जानकारी पत्रकारों को देते हुए श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा ने रथयात्रा के बारे में विस्तार से बताया कि समूचे ब्रम्हाण्ड में एकमात्र श्री जगन्नाथ महाप्रभु ही ऐसे भगवान है, जो वर्ष में एक बार बाहर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते है, और प्रसाद के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। केवल पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ जी, बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी के लिए तीन अलग अलग रथ बनाए जाते हैं, उसके बाद यह गौरव छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी रायपुर को प्राप्त है। छत्तीसगढ़ में आज भी ऐसे लाखों लोग हैं, जो किसी कारणवश पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मन्दिर के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे भक्तजनों के लिए रथयात्रा एक ऐसा स्वर्णिम अवसर रहता है जब भक्त और भगवान के बीच की दूरियां कम हो जाती है। वैसे तो भगवान जगन्नाथ महाप्रभु जी की लीला अपरम्पार है. तथापि रथयात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक विधियों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने ने बताया कि वैसे इस यात्रा का शुभारम्भ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान पूर्णिमा से हो जाता है. जिसमें भगवान जगन्नाथ श्री मन्दिर से बाहर निकलकर भक्ति रस में डूबकर अत्यधिक स्नान कर लेते हैं, और जिसकी वजह से वे बीमार हो जाते हैं। पन्द्रह दिनों तक जगन्नाथ मन्दिर में प्रभु की पूजा अर्चना के साथ दुर्लभ जडी बूटियों से बना हुआ काढ़ा तीसरे, पांचवें, सातवें और दसवें दिन पिलाया जाता है। भगवान श्री जगन्नाथ को बीमार अवस्था में दर्शन करने पर भक्तजनों को अतिपुण्य का लाभ प्राप्त होता है। स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने के पश्चात् भगवान श्री जगन्नाथ जी अपने बड़े भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा जी के साथ तीन अलग अलग रथ पर सवार होकर अपनी मौसी के घर अर्थात् गुण्डिचा मन्दिर जाते हैं, प्रभु की इस यात्रा को रथयात्रा कहा जाता है। जगन्नाथ जी के रथ को नन्दी घोष कहते हैं एवं बलराम दाऊ जी के रथ को तालध्वज कहते हैं, दोनों भाईयों के मध्य भक्तों का आकर्षण केन्द्र बिन्दु रहता है. बहन सुभद्रा जी देवदलन रथ पर सवार होकर गुण्डिचा मन्दिर जाती हैं। उक्त अवसर पर भगवान जगन्नाथ महाप्रभु जी का नेत्र उत्सव मनाया जाता है। रथयात्रा के दिन श्री जगन्नाथ मन्दिर गायत्री नगर में 11 पन्डितों द्वारा जगन्नाथ जी का विशेष अभिषेक, पूजा एवं हवन करते हुए रक्त चंदन, केसर, गोचरण, कस्तुरी एवं कपूर स्नान के पश्चात् भगवान को गजामूंग का भोग लगाया जाता है।

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